शनिवार, 28 सितंबर 2019

887


डॉ0 सुरंगमा यादव
1
विकल पल
आतुर आलिंगन
ढूँढते हर पल
प्रिय सान्निध्य
ओह!जग बंधन
अधरों पे क्रन्दन!
2
गहरी रात
मन में खिल रहा
नित नव प्रभात
प्रिय का साथ
सब ओर उजास
नैनों में मृदु हास
3
तुम्हारा साथ
पंख लगे हजारों
मन के एक साथ
दूर गगन
आया कितना पास
हो गयी पूरी आस
4
कोई हो ऐसा
हर ले जो मन के
सारे दुःख- संताप
अश्रुजल में
खिला दे जो पल में
शत प्रेम कमल
5
घटाओ सुनो !
अभी न बरसना
राह में है कहीं वो
व्यग्र होके मैं
द्वार पर हूँ खड़ी
लगाना मत झड़ी
-0-

रविवार, 22 सितंबर 2019

886


रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
मन उन्मन
तरसे आलिंगन
कहाँ खो गए
अब चले भी आओ
परदेसी हो गए !!
2
आकर लौटे
बन्द द्वार था मिला
भाग्य की बात,
दर्द मिले मुफ़्त में
प्यार माँगे न मिले।
3
टूटते कहाँ
लौहपाश जकड़े
मन व प्राण
मिलता कहाँ मन
जग निर्जन वन।
-0-

मंगलवार, 17 सितंबर 2019

885-अधर-हस्ताक्षर


डॉ.पूर्वा शर्मा
 1.     
रिश्ता निराला
शरारतों में डूबा
बचपन हमारा,
कुछ टॉफियाँ
राखी के बदले में
अब नहीं मिलतीं
2.     
ज़िंदगी चखे
चाशनी से टुकड़े
प्रत्येक मोड़ पर,
मन ना भरे
मनभावन यादें
करती रही बातें
3.     
खाली है झोली
देखे खड़ा बेबस 
फ़कीर-सा शिशिर,
पिटारा भर
पुष्प-पल्लव लाया
ये वसंत खजांची।
4.     
अडिग रही
हरेक मौसम में
साहिल-सी ज़िन्दगी,
हिलोरे खाती
ऊँची, तो कभी नीची
लहरें सुख-दुःख।
5.     
वर्षों पहले
भाल पर थे सजे
अधर हस्ताक्षर,
भीनी ताज़गी
अब तक अंकित
मन भी पुलकित।
-0-

शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

884


दैवीय बाँध  
               अनिता ललित  
जब से बातें समझ में आनी शुरू हुईं थीं, मम्मी-पापा से यही सुनते आए थे - “तुम्हारे जन्म के समय घर में शहनाई बज रही थी! तुम हमारे लिए लक्ष्मी हो, तुम्हारे जन्म के बाद ही
पापा के काम की तरक्क़ी भी हुई और घर में ख़ुशहाली आई!” सुनकर बड़ा अच्छा लगता था हमें, इतराते फिरते थे पूरे घर में! यही नहीं! अपने हर जन्मदिन पर मम्मी-पापा से यही सुनते आते रहे! ढेर सारे आशीर्वाद और प्यार-भरी बातों के साथ, यह बात कहना वे दोनों कभी नहीं भूलते थे! हमारी सदैव पूरी कोशिश रहती थी कि कोई भी ख़ुशी का दिन हो, चाहे कोई  त्योहार हो, हमारा या पापा-मम्मी का जन्मदिन हो, हममें से किसी के विवाह की वर्षगाँठ हो, मातृ-दिवस हो, पितृ-दिवस हो, शिक्षक-दिवस हो, गुरु पूर्णिमा हो...सबसे पहले हम उनको फ़ोन करके शुभकामनाएँ देते थे, उनका आशीर्वाद लेते थे!
      जीवन में सुख-दुःख तो लगे ही रहते हैं! इस दुनिया में आपके दुख पर ख़ुश होने वाले तथा सुख पर जलने व दुखी होने वाले तो बहुत मिल जाएँगे, परन्तु आपके सुख से, आपकी प्रसन्नता से यदि किसी को सचमुच आपसे अधिक ख़ुशी मिलती है, तो वे होते हैं आपके माता-पिता! हमारे हर सुख, हर ख़ुशी पर, पहला अधिकार पापा-मम्मी का है, हमेशा से हमारा यही मानना रहा है! उनके आशीर्वचनों से हमारी ख़ुशी कई-कई गुना बढ़कर हम तक वापस पहुँचती थी!
     इस बार हमारा पहला जन्मदिन है, जिसमें न पापा साथ हैं, न ही मम्मी! याद तो बहुत आती है उनकी, दुःख भी होता है, मगर मन को यही समझाते हैं, कि सारे कष्टों से, इस दुनिया के मायाजाल से, छल-प्रपंचों से रिहा होकर, वे दोनों परमात्मा की गोद में सुक़ून से बैठे होंगे और वहीं से अपना स्नेह और आशीर्वाद हमें दे रहे होंगे!
1
जीवन मेरा
हर सुख ही मेरा
आपकी देन!
2
दैवीय बाँध
मेरी आत्मा में बसा
आपका प्यार!
-अनिता ललित
-0-

गुरुवार, 5 सितंबर 2019

883--अमूल्य भेंट


[बहन कमला निखुर्पा द्वारा भेजी अतुल्य एवं अमूल्य भेंट सबको समर्पित। इन उद्गारों के लिए मैं चिर ॠणी रहूँगा। -रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]

(शिक्षक दिवस पर मेरे सृजन गुरु मेरे हिमांशु भैया को समर्पित ये चोका )
कमला निखुर्पा ( प्राचार्या केन्द्रीय विद्यालय , पिथौरागढ़-उत्तराखण्ड)


हाथों में थमा
सृजन की लेखनी
नेह सियाही 
भर यूँ छिटकाई
उठी लहर 
भीगा-भीगा अंतर
तिरते शब्द
उड़े क्षितिज तक 
मिलन हुआ
धरा से गगन का
रच ली मैंने
फिर नई कविता
निकल पड़ी
अनजानी राह पे
मिलते रहे
पथ में  साथी -संगी
कोई हठीली
अलबेली सहेली
हवा वासंती 
बदरी सावन की
प्प से गिरे
सिहरा के डराए
भिगो के माने
रिमझिम की झड़ी 
राह में मिली 
नटकेली कोयल 
छिप के छेड़े
कूक हूक जगाए
बागों में मिली
तितली महारानी
फूलों का हार
पाकर इतराई 
गुंजार करे 
भाट भँवर -टोली
सृजन राह
अनुपम पहेली
 नई -सी भोर
 निशा नई नवेली 
नवल रवि
चंद्रिका-सी सहेली।
मुड़के देखूँ
चित्र;प्रीति अग्रवाल
दूर क्षितिज पार 
तुम्हें ही पाऊँ
गहन गुरु -वाणी
थामे कलम
नेह भर सियाही
बूँदे छिटकी
सुधियों की सरिता 
उमगी बह आई।
-0-

सोमवार, 2 सितंबर 2019

882


डॉ0 सुरंगमा यादव
1
चहुँओर है
कोलाहल कलह
तू मलय वात-सा,
ताप हर ले
आषाढ़ घन बन
सींच दे क्लांत मन
2
छाया; रामेश्वर काम्बोज ;हिमांशु'
सावन-भादो
झूम-झूम बरसें
प्रेमी मन तरसे,
कोई न जाने
बादल संग नैना
बरसें दिन-रैना
3
तुम्हारे लिए
खुला मन का द्वार
जन्म-जन्मान्तर से,
संचित प्रेम
वार दूँ तुम पर
आओ तो प्रियवर!
4
सावनी-तीज
नेह पी का बरसा
मन आँचल भीगा,
प्यार का रंग
ऐसा करे कमाल
मेंहदी दूनी लाल
5
हवा का दर्द
दूर तलक कोई
चले जो हमदर्द,
ढूँढते बीते
कितने युग-कल्प
ले जो प्रेम संकल्प ।
6
छाया; रामेश्वर काम्बोज ;हिमांशु'
शाम उदास !
कहने को कितना है,
सुनने वाला  कौन?
दूर पास
जीवन- पथ पर
खोया हास-विलास
7
गोधूलि बेला
शिथिल हुआ सूर्य
बढ़ रही थकान,
तम के पग
कर रहे प्रशस्त
निशा सखी का पथ!