बुधवार, 26 सितंबर 2018

833


चोका / डॉ.पूर्वा शर्मा

तेरी नेह वर्षा में

भीग न जाऊँ
तेरी नेह-वर्षा में
यही सोचके 
कसकर पकड़ी
वक्त-छतरी,
पर न जाने कैसे
इसको लाँघ
भीगता ही रहा ये 
मन औ’ तन,
एक अरसे बाद 
पाया खुद को
पूर्णतः ही प्लावित,
लबालब था
प्रत्येक रोम मेरा,
इन बूँदों ने 
तर कर ही दिया
सूखा जीवन मेरा ।
-0-
2-लम्हें-ही  लम्हें

देखे हैं मैंने 
तरह-तरह के
लम्हें ही लम्हें,
तेरे साथ बिताए   
नायाब लम्हें,
तेरी जुदाई वाले
भीगे-से लम्हें,          
झट से गुज़रे थे
तेरी बाहों में,
युग जैसे बीते थे
इंतज़ार में,
ज़िंदगी में बसे हैं
लम्हें ही लम्हें,
कभी इश्क से मीठे
कभी कड़वे-
करैत के विष  से,
चखा करूँ मैं
हर लम्हें का स्वाद,
बयाँ करते
सभी लम्हें, महज़  
दास्तान  तेरी -मेरी ।
-0-

मंगलवार, 11 सितंबर 2018

सेदोका -ताँका

1-डॉ.जेन्नी शबनम 
1
वर्षा की बूँदें
उछलती- गिरती
ठौर न पाती
मौसम बरसाती
माटी को तलाशती ।
2
ओ रे बदरा
इतना क्यों बरसे
सब डरते
अन्न -पानी दूभर
मन रोए जीभर ।
3
मेघ दानव
निगल गया खेत,
आया अकाल
लहू से लथपथ
खेत व खलिहान ।
4
बरखा  रानी
झम -झम बरसी
मस्ती में गाती
खिल उठा है मन
नाचता उपवन ।
5
प्यासी धरती
अमृत है चखती
सोंधी- सी खूश्बू
मन को लुभाती
बरखा तू है रानी।
 -०-
2-कृष्णा वर्मा
1
जीवन होता
कबड्डी के खेल-सा
छूने दिया तो हारे ,
विजय रेखा
छूने बढ़े  तो खींचे
दौड़के लोग पीछे।
2
दुनिया है ये
साहिल न सहारा
 कहीं  भी किनारा
हैं तन्हाइयाँ
मरी यहाँ रौनकें
बची रुसवाइयाँ।
3
बाँटते रहे
समझ कर प्यार
ये खुशियाँ उधार,
लौटाया नहीं
जब तूने उधार
मरा दिल घाटे से।
4
बुनी चाहतें
पिरोते रहे ख़्वाब
तुम्हारी दुआओं में,
होती शिद्दत
मिल  ही  जाता  प्रेम
रियाद के बिना
5
दोनों अदृश्य
प्रार्थना औ विश्वास
अजब अहसास
असंभव को
संभव करने की
क्षमता बेहिसाब।
6
मेरे स्वप्न की
 मुँडेर पर माँ
रख देती है दिया  
अँधेरा मिटा
मिल जाती है दिशा
स्वप्न की उड़ान को।
-0-

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

831


1-पिंजरे में चिड़िया
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

क़ैद हो गई
पिंजरे में चिड़िया
भीतर चुप्पी
बाहर अँधियार
मन में ज्वार,
चहचहाना मना
फुदके कैसे
पंजों में बँधी डोरी
भूली उड़ान,
बुलाए आसमान।
ताकते नैन
छटपटाए तन
रोना है मना
रोकती लोक-लाज
गिरवी स्वर,
गीत कैसे  गाएँगे
जीवन सिर्फ
घुटन की कोठरी
आहें न भरें
यूँ ही मर जाएँगे।
चुपके झरे
आकर जीवन में
बनके प्राण
हरसिंगार-प्यार,
लिये कुठार
सगे खड़े हैं द्वार
वे करेंगे  प्रहार
-०-
2- पी के मन भाऊँ 
डॉ.सुरंगमा यादव
1
क्या बन जाऊँ!
जो पी के मन भाऊँ 
सारे सपने
अपने बिसराऊँ 
स्वप्न पिया के
मैं नयन बसाऊँ 
मौन सुमन
सुरभित होकर
कंठ तिहारे
मैं लग इठलाऊँ 
कुहू -सा स्वर
पिया मन आँगन 
कूज सुनाऊँ 
पीर-वेदना सारी
सह मुस्काऊँ 
बनूँ प्रीत चादरा 
पिया के अंग
लग के शरमाऊँ 
और कभी   मैं 
जो जल बन जाऊँ 
अपनी सब
पहचान भुलाऊँ 
रंग उन्हीं के
फिर रँगती जाऊँ 
योगी -सा मन
हो जाए यदि मेरा
सम शीतल
मान -अपमान को
सहती जाऊँ 
जो ऐसी बन जाऊँ 
तब शायद 
पिया के मन भाऊँ 
प्रेम बूँद पा जाऊँ 
-०-
(चित्र गूगल से साभार )

शनिवार, 1 सितंबर 2018

830-ताँका


डॉ.कविता भट्ट 

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