शनिवार, 31 दिसंबर 2016

747

अनिता मण्डा
1
हर प्यास अधूरी है।
जीवन में फिर भी
इक आस जरूरी है
2
सब फूल तुम्हारे हैं।
जीवन बगिया के
सब ख़ार हमारे हैं।
3
अनुबंध निराले हैं।
फूलों के तन पर
काँटे रखवाले हैं।
4
दस्तूर निराला है।
राम सदा पाता
क्यों देश निकाला है।
5
प्रीतम क्यों दूर बसे
प्राणों को मेरे
बिरहा का नाग डसे।
6
आँखों से बह निकली
मन की पीड़ा ये
चुपके से कह निकली।
7
चन्दा पी से कहना
दूर मुझे उनसे
पल एक नहीं रहना
8
कान्हा से नैन मिले
राधा के मन में ,
चाहत के फूल खिले।
9
हमराह हमारे हैं।
सुख से भी बढ़कर
दुख लगते प्यारे हैं।
-0-

10 टिप्‍पणियां:

Anita Manda ने कहा…

स्थान देने हेतु आभार !!

Dr.Purnima Rai ने कहा…

बहुत सुंदर..अनीता जी

Dr. Surendra Verma ने कहा…

बहुत सुन्दर रचनाएं।सहज और दिल को छू लेने वाली।

सविता अग्रवाल 'सवि' ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना अनिता जी बधाई और नव वर्ष की शुभकामनाएं |

ज्योति-कलश ने कहा…

बहुत सुन्दर माहिया ...
अधूरी प्यास , अनुबंध ..क्या कहिए सब एक से बढ़कर एक !!
हार्दिक बधाई प्रिय अनिता !!

Jyotsana pradeep ने कहा…

चाहत और पीड़ा पर बहुत खूबसूरत माहिया लिखे है प्रिय अनिता ...
राम वाला बहुत मनमोहक!
हार्दिक बधाई!!!

Unknown ने कहा…

शुन्दर शब्द रचना
http://savanxxx.blogspot.in

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

हर प्यास अधूरी है।
जीवन में फिर भी
इक आस जरूरी है...|

सभी माहिया बहुत अच्छे हैं...पर ये वाला बहुत पसंद आया...|
हार्दिक बधाई...|

Vibha Rashmi ने कहा…

बहुत सुंदर माहिया अनिता मंडा जी ।बधाई लें ।

आँखों से बह निकली
मन की पीड़ा ये
चुपके से कह निकली।
वाह ! विभा रश्मि

Vibha Rashmi ने कहा…

बहुत सुंदर माहिया अनिता मंडा जी ।बधाई लें ।

आँखों से बह निकली
मन की पीड़ा ये
चुपके से कह निकली।
वाह ! विभा रश्मि