रविवार, 11 सितंबर 2016

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खबरी ताई 

कमला घटाऔरा 



गाँव में सब उसे ताई बुलाते। लेकिन  दूर से आती देख खबरी ताई कहकर सूचना देते एक दूसरे को देख कर आँखों में मुस्कुरा कर मजाक उड़ाते । मेरी दादी की वह हमउम्र थी पर सब की देखा देखी मैं भी उन्हें ताई कह कर सति सिरी अकाल बुलाती ।उसके लिए सारा गाँव उसका अपना परिवार था ।उसकी उपस्थिति में किसी मर्द की मज़ाल नहीं थी कि गली से गुजरते वक्त किसी बहू बेटी की तरफ आँख उठा कर देख सकें ।उसका बहुत रौब था ।वह हमारे मुहल्ले में ही रहती थी ।दुपहर के काम के बाद सब बहू बेटियाँ ,ताई ,चाची ,भाभी  हमारी डिओढ़ी के आगे कुछ न कुछ काम लेकर बैठ जातीं । चर्खा , बुनाई या फिर कढ़ाई का । दादी अपने भँडार के लिये काते सूत को अटेरने आदि  का काम करती । मेरे हाथों मे क्रोशिया होता ।
किसी न किसी काम से ताई का गाँव का एक चक्कर रोज लगता ।आते वक्त उसके पास खबर जरूर होती देश या दुनिया की ।सब के कान खड़े हो जाते खबर सुनने को । उसकी तेज निगाह कोई खबर सुनाने से पहले ।चारों ओर का मुयाएना करती तब खबर सुनाती जो काम छोड़कर खबर सुनने को कान खड़े करके बैठ जाती उन्हें वह झिड़क भी देती ।एक बार खबर लाई -फलाने के बेटे को पागल कुत्ते ने काट लिया ।  तबसे वह छड़ी साथ लेकर चलती । एक बार वह खबर -लोग  कह रहे थे कि खेतों में पड़ोसी देश के दो लोग पैराशूट से उतरते देखे हैं ।वहीं एक व्यक्ति मरा पाया गया है नहर किनारे । 
"तू भी बीबी कहाँ से अफवाहें सुनकर आ जाती हो हमें डराने के लिए",  किसी हम उम्र ने उसे टोक दिया ।
मैं उस दिन अपनी दादी के साथ नजदीक के शहर गई थी जरूरी सामान लेने ।मैं भी दुकानदारों में  होती बातें सुन आई थी वैसी ही ।मैंने बात की पुष्टि की तो सब को यकीन आ गया । अंदेशा था शायद ब्लैक आउट लग जाए गाँव की सुरक्षा के लिए । घरों में तेल के दीये और लालटेन से काम लेना होगा लाइटें नहीं जगा सकेंगे सब कहने लगीं ।गलियों की लाइटें सब बन्द  रहेंगी ,जाने कितने दिन । सब के चेहरों पर अज्ञात भय छा गया । 
"ताई तू बुरी खबरें तो ना लाया कर डराने वाली" किसी कमजोर दिल वाली ने टोक ही दिया ।
"अरे डरती क्यों हो । देश के जवान बैठें हैं ना सीमा पर। डरती क्यों हो ? वे करेंगे न दुश्मनों का मुकाबला ।" उसके अपने दो बेटे फौज में थे। उसकी बातों से थोड़ी हिम्मत बँधती , जो होगा देखा जाएगा हम दुनिया से अलग थोड़े ही हैं ।लेकिन जब गाँव के ऊपर से हवाई जहाज जाते मन काँप जाता । कहीं ये बम्ब गिराने वाले न हों । वहीं हँसोड़ स्वाभाव की मेरी एक सहेली हँसाने को कह देती -लो फिर आ गए डाकू बेईमान । वह लड़ाकू विमान को इसी नाम से पुकारती हमें हँसा देती । उन दिनों शौचालय घरों में नहीं होते थे । बाहर खेतों में  जाना पड़ता था । मुँह अँधेरे वह भी डर डर कर कि कहीं  ऊपर से बम्ब न आ गिरें । याद नहीं अब कितने दिन ऐसे गुजरें गाँव में डर की दहशत में । रात को ऐसा लगता जैसे सारा गाँव काली चादर ओढ़ कर किसी गुफा में चला गया हो । सब ओर सन्नाटा पसर जाता ।
एक दिन ताई की छड़ी की आवाज़ बडी मधुर लगी । उसकी आवाज से ही पता चल जाता खबर अच्छी है या  बुरी ।"आज कौन सी खबर लाई हो ताई ?"खबर सुनने को बेताब स्वर बोल उठा ।
"बैठने तो दो  पहले बताती हूँ ,सीमा पर निगरानी बढ़ा दी गई है ।जल्दी ही ब्लैक आउट हटा दिया जाएगा ।" ताई की इस  खबर ने जैसे डर की गर्मी से कुम्लाये मनों पर शीतल छिड़काव कर दिया हो । बीजी पिता जी से दूर गाँव में दादी के पास रहने के लिये मैं रुक तो गई थी; लेकिन रोज की देश के दुश्मनों की खबरे सुन कर वापस जाने के लिए दादी पर जोर डालने लगी थी ।पर जाने को मन भी नहीं करता था । ताई खबरी की बातें काफी मनोरंजक होती । मन खूब लगा वहाँ । अब कहाँ मिलेगें ऐसे लोग मोह प्यार वाले। गाँव के सब लोगों को एक परिवार समझने वाले ,मिल-जुल कर रहनें वाले !  कहाँ गए वे दिन सुहाने ? 

झूला यादों का 
झूलने लगा मन
ताई की गोद ।

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6 टिप्‍पणियां:

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत मर्मस्पर्शी हाइबन है आपका कमला जी...| सच में, पहले की तरह पूरे गाँव...पुरे मोहल्ले को अपना ही परिवार मानने वाले लोग अब कहाँ मिलेंगे...? ऐसी यादों के लिए बस मन में यही आता है...जाने कहाँ गए वो दिन...|
इतने अच्छे, मन को छू लेने वाले हाइबन के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें...|

Unknown ने कहा…

सबसे पहले मैं सम्पादक द्वय का धन्यबाद करना चाहूँगी ।जिन्होंने मेरी रचना को त्रिवेणी में स्थान दिया । प्रियंका जी आप का भी आभार व्यक्त करती हूँ कि आप ने रचना को पढ़कर अपने विचार रखे ।
अब मैं यह हाइबन पढ़ने वालो को कुछ और भी बताना चाहूँगी कि हर कार्य के पीछे कोई न कोई कारण होता है यह लगभग साढेचार दसक पुरानी बात मैं लिख नहीं पाती अगर कुछ दिन पहले मेरी किसी से यूं बात न होती ।... मैं शॉपिंग को जा रही थी एक बहन शॉपिंग करके आ रही थी । धीरे धीरे घुटनों की तकलीफ के कारण ।मैनें सहज स्वाभाव पूछ लिया ,'आप ठीक हैं बहन ?' बोली,इंग्लैंड की गिफ्ट है ।ऐसे ही चलता है ।'मैंने भी हाँमी भरी ,'सब का यहाँ यही हाल है ।' बोली एक आपने बात की आज सुबह से अब दोपहर तक ।मैं तो वापस चली जाऊँगी । कहती वह आगे बढ गई ।तब मुझे खबरी ताई याद आई और हाइबन लिखा गया । यहाँ बच्चे अपने माता पिता को विदेशों में बुला तो लेते हैं लेकिन वे उन्हें अपना समय नहीं दे पाते न दो घड़ी बैठ कर बात कर पाते हैं । वे परिवार में रह कर भी अकेलापन महसूस करते हैं ।एक वह युग था कि पराये भी अपनों की तरह रहते बतियाते थे ।

Unknown ने कहा…

Better

Jyotsana pradeep ने कहा…

बेहद भावपूर्ण !!!
"अब कहाँ मिलेगें ऐसे लोग मोह प्यार वाले। गाँव के सब लोगों को एक परिवार समझने वाले ,मिल जुल कर रहनें वाले ! कहाँ गये वे दिन सुहाने ? "
सही कहा आपनें कमला जी....इस मर्मस्पर्शी सृजन के लिए ढेर सारी बधाई !!!

ज्योति-कलश ने कहा…

बहुत सुन्दर हाइबन ! आपने तो दृश्य ही साकार कर दिया आदरणीया !!
हार्दिक बधाई स्वीकारें !!

सादर
ज्योत्स्ना शर्मा

Unknown ने कहा…

कश्मीरी लाल,ज्योत्सना प्रदीप ,ज्योत्सना शर्मा जी आप सब का भी धन्यबाद हाइबन पढ़कर भाव व्यक्त करने के लिये ।