सोमवार, 16 जून 2014

आकाश बना पिता

डॉ सरस्वती माथु
1
अँगुली थामे
पथरीली राहों पे
चलना सीखा
कैसे चुकाऊँ मोल
स्नेह पथ अनमोल
2
घर- दीवारें
जोड़ी मन तारों से
विश्वास -भरा
आकाश बना पिता
जमीं पे किया खड़ा ।
3
मन -संस्कृति
सभ्यता की नींव भी
लोक भी पिता
जीवन -द्वार पर
खड़े - मसीहा जैसे ।
4
तुम्हारी गोदी
मेरा घर -आँगन
तुम्हारा मन
मंदिर का दर्शन
शत शत नमन ।
5
पिता - चरण
बेटे -बेटी के लिए
ऐसी चौखट
जहाँ दिया जलाएँ
तो मन हो रोशन I
6
मन -आँगन
अँधेरा हटाकर
रोशनी भर
जलता दिया पिता
मसीहा सा लगता ।
-0-

1 टिप्पणी:

ज्योति-कलश ने कहा…

sundar bhaav puurn prastuti ! saadr naman !!