बुधवार, 11 जुलाई 2012

स्नेह स्पर्श


तुहिना रंजन
1
मेरे सद्गुरु 
आशीष  बरसाते 
अंतर भिगो जाते 
शीश नवाए 
अँजुरी भी फैलाए
पीती जाती रस मैं! 
2
प्रीत की पाती 
लिखी होगी तुमने 
उफ़!! मगर आँसू  !
ऐसे निर्मम 
छलका दी अँखियाँ 
सब  ही धुँधलाया
3
स्नेह का स्पर्श 
मिटा देगा अँधेरे 
सब शिक़वे मेरे
पास तो आओ 
थाम लो मेरा हाथ 
मुझे छू लो-- जी जाओ !! 
4
खिला चमन 
लो फूली अमराई 
पियू- पियू की तान 
कोकिल की भी
देने लगी सुनाई 
बसंत  रुत आई  ।
5
अठखेलियाँ 
बूँदों की पत्तों संग 
शाखों की फूलों संग 
मन बावरा 
झूले में लेता पींगें 
बादलों को जा चूमे ।
-0-
डॉ सरस्वती  माथुर
1
दूर देश से
आते प्रवासी पाखी
अनजाने देश में
निहारें धरा
दीखते हैं व्याकुल
तलाशते बसेरा ।
2
टपकी बूँदें
सजा बंदनवार
धरा के हर द्वार
मन भिगोती
लय में टपकतीं
सावन के अँगना ।
3
सावन रुत
अल्हड -सा मौसम
बागों में जब आया 
झूले लरजे
ले ऊँची पींगे झूली
झूले पे सहेलियाँ ।
4
पावस रानी
सावन की डाल पे
मदमस्त है गाती
कजरी गीत

मिलके सहेलियाँ
बागों में सब आतीं 
5
डोलती यादें
पुरवाई के संग
मन के नभ पर
भटकती-सी
प्रियतम तरु से
लिपट  रह जातीं ।
-0-

6 टिप्‍पणियां:

ktheLeo (कुश शर्मा) ने कहा…

वाह! सारे रंग सुन्दर हैं और शब्द विन्यास पैना!

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

पावस रानी
सावन की डाल पे
मदमस्त है गाती
कजरी गीत
मिल संग सहेलियाँ
बागों में हैं आतीं ।

Bahut khub! bahut2 badhaai..

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत अच्छे सेदोका हैं...बधाई...।

बेनामी ने कहा…

Swati says
बहुत अर्थपूर्ण सुंदर सेदोका रचनाकारों को बधाई! सभी अच्छे हैं, पर डॉ सरस्वती माथुर का यह सेदोका उनके उन्नत विज़न को दर्शाता है ... " सावन रुत
अल्हड -सा मौसम
बागों में आया तो
झूले लरजे
ले ऊँची पींगे झूली
झूले पे सहेलियां ".. अति सुंदर ...स्वाति

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सुन्दर भावपूर्ण सेदोका. तुहिना जी और सरस्वती जी को बधाई और शुभकामनाएँ.

बेनामी ने कहा…

Saraswati Says....

आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया!