रविवार, 20 नवंबर 2011

स्वर्ग बने ये न्यारा


डॉ0 मिथिलेशकुमारी मिश्र
1
नारी नहीं है
कोई खेल खिलौना
वो प्रतिष्ठा है
घर-परिवार की
सकल समाज की
2
किसी को कोई
सुधारेगा क्या भला
खुद को गर
सुधारे हर कोई
स्वर्ग बने ये न्यारा
3
सुख या दु:ख
बाहर से न आते
मन की बातें
जैसे भी समझ लो
महसूस कर लो
4
खाली जो बैठें
प्राय: बुरा ही सोचें
व्यस्त जो रहे
उसे समय कहाँ
जो बैठ बुरा सोचे
5
माँ तो होती वो
विकल्प न जिसका,
समझें न जो
उसे जीते जी बच्चे
बाद में पछताते
-0-

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