माहिया


हमारे लोकगीत भी हमारे समाज की नब्ज़ हैं । पूरे समाज में जो आज घट रहा है लोक साहित्य उसे भी समेट रहा है  'माहिया' पंजाब का प्रसिद्ध लोकगीत है। माहिया का मूल स्वर प्यार मुहब्बत और मीठी नोंक झोंक है । इसमें शृंगार रस के दोनों पक्ष संयोग और वियोग रहते हैं; लेकिन अब अन्य रस भी शामिल किए जाने लगे हैं। इस छन्द में गेयता प्रमुख है , अत: कभी -कभी कुछ लोग गुरु मात्रा को दबाकर लघु रूप में भी उच्चरित करने का पक्ष लेते हैं; लेकिन हमारा  सुदृढ़ विचार है कि हिन्दी में इसकी  न तो कोई बाध्यता  है और न आवश्यकता ही ।इस तरह की भाषा विकृति से बचना चाहिए ।
इस छन्द में पहली और तीसरी पंक्ति में 12 -12 मात्राएँ तथा दूसरी पंक्ति में 10 मात्राएँ होती हैं। पहली और तीसरी पंक्ति तुकान्त होती है । गेयता के लिए ज़रूरी है कि ये मात्राएँ द्विकल के रूप में हों । केवल मात्राओं की गिनती से ही लय नहीं बन पाती है ।
द्विकल से तात्पर्य है -मात्राओं में 12 या 21 का क्रम न हो । यानी एक मात्रा के वर्ण के साथ फिर एक मात्रा का ही वर्ण आए, जैसे-

1-रामेश्वर काम्बोज

1.
ये भोर सुहानी है ( 2 21 122 2=12)
चिड़ियाँ मन्त्र पढ़ें (112 21 12 =10)
सूरज सैलानी है ( 211 2222=12)
ऊपर भोर 21 के बाद सुहानी -122 आया है , यानी  एक-एक मात्रा वाले दो वर्ण हैं। अन्य पंक्तियों मे भी ऐसे ही देखा जा सकता है । इससे माहिया की लय बनी रहेगी।
 
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु ' ; डॉ . हरदीप कौर सन्धु