शुक्रवार, 31 मई 2019

864-हमारा हिन्दुस्तान


हमारा हिन्दुस्तान
डॉ0 सुरंगमा यादव

दिव्य वितान
हमारा हिन्दुस्तान
इसके तले
मिटें सारे संताप
क्लांत पथिक
यहाँ कहीं से आया
नेह-आश्रय
देकर पल में ही
ताप मिटाया
युग बीते कितने
काल-भाल पे
अंकित है स्वर्णिम
चमक रहा
सुन्दर नामांकन
इसकी रज
माथे पर शोभित
हो बारंबार
देव-मनुज सब
नमन करें
इसको शत बार
विजय श्री है
पावन कंठहार
नहीं किसी से
कभी ठानता रार
समाधिस्थ है
जाग्रत प्रतिपल
शत्रु का वार
सदा करे विफल
प्रथम कभी
करे नहीं प्रहार
जाने संसार
जियो जगत हित
है इसका उद्गार


शनिवार, 18 मई 2019

863


1-ममतामयी 
शशि पाधा
1
 यह कैसा नाता है
सुख दुःख दोनों में
दिल माँ भर आता है ।
2
चुनरी में बाँधी है
माँ की ममता तो
हम सब की साँझी है ।
3
चुप -चुप -सी रहती है
टूटे रिश्तों की
माँ पीड़ा सहती है ।
4
क्यों लगता न्यारा है
जिस घर माँ रहती
वो ठाकुर द्वारा है ।
5
बिन पूछे जान लिया
दुखड़ा बेटी का
माँ ने पहचान लिया ।
6
लोरी की तानों में
खुशियाँ झरती हैं
माँ की मुस्कानों में ।
7
नयनों से नेह झड़ी
माँ तो  नित भरती
झोली आशीष भरी ।
  -0-
2-डॉ.पूर्वा शर्मा
1
शाख- अंक में 
कली व किसलय 
किलकिलाएँ,
हवा गुनगुनाएँ
जब वसंत आएँ।
-0-
3- सुदर्शन रत्नाकर
 
कौन है आया
लौटके आँगन में
फूल  वहाँ खिले हैं।
हवा गा रही
पक्षी चहचहाए
ऋतुराज हैं आए।
-0-

सोमवार, 13 मई 2019

862-आत्मा में बसे

रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
आत्मा में बसे
भ्रम यह तुम्हारा
ध्यान से देखो !
आत्मा हो  तुम मेरी
या रीप्रिंट आत्मा का।
2
डूबी थी नौका
भागे कुछ पा मौका
घोर अँधेरा
कोई न रहा साथ
थामा तुमने हाथ।
3
समझें लोग
नफ़रत की भाषा
दो ही पल में
हुआ मोतियाबिंद
प्रेम न दिखे -सूझे।
4
उदास नैन
छप गए मन में
रोज मैं बाँचूँ
सौ -सौ जिनके अर्थ
पढ़ें मन की आँखें।
5
अकेलापन
टीसता पल पल
प्राण विकल
सुनने को तरसें
रोम- रोम कलपें।
6
कुछ तो दे दो
दारुण मृत्यु सही
जीवन भार
अब ढोया न जाए
अब रोया न जाए।
7
किसे दिखाते
निर्मल मन -दर्पण
निपट अंधे
करें रोज़ फैसला
हमको यही गिला।
8
चले जाएँगे
कहीं बहुत दूर
गगन- पार
तब पछताओगे
हमें नहीं पाओगे।
9
कुछ न लिया
हमने दुनिया से
तुमसे मिला
दो घूँट अमृत था
उसी को पी  मैं जिया।
10
करते रहो
पूजा ,व्रत,आरती
धुलें न कभी
दाग़ उस खून के
जो अब तक किए।
11
स्वर्ण- पिंजर
कैद प्राणों का पाखी
जाए भी कहाँ
न कोई सगा
सब देते हैं दगा
टूट गया भरोसा।
-0-

गुरुवार, 2 मई 2019

861-सुनो आवाज़


सुदर्शन रत्नाकर
1
ओस की बूँदें
ओढ़ ली धरती ने
झीनी चादर
मत रखना पाँव
मोती टूट जाएँ।
2
सुनो आवाज़
संगीत है गूँजता
गाते विहग
सुर-लय-ताल में
पवन के  वे संग।
3
ख़ामोश रात
कोहरे में लिपटी
जागती रही
करती इंतज़ार
सूर्य के उजास का।
4
कमल खिले
भँवरे मँडराए
मिला पराग
सुध-बुध है खोई
बचता नहीं कोई।
5
खिल रहे हैं
ग्रीष्म की आतप में
गुलमोहर
दहकते अंगार
धरा पर बिखरे।
6
सदाबहार
महकते रहते
हर मौसम
सुख-दुख सहते
फिर भी मुस्कुराते।

7
धरा ने ओढ़ी
धानी वो चुनरिया
चँदोवे वाली
हवा करे ठिठोली
छूकर चली जाए।
8
साँझ की बेला
खिलने लगी चम्पा
शशि- किरणें
फैली जग आँगन
सुरभित उजाला।
9
 सूरज से ले
ऊर्जा तप जाने की
खिले पलाश
प्रकृति का नियम
तपता वो खिलता।
10
भीनी -सी गंध
खिली आम्र की बौर
बौरी होकर
चहकती कोयल
गूँजते मीठे बोल।
11
वसंती हवा
मधुरस में डूबी
डुबकी लगा
छोड़ कृत्रिम ढंग
प्रकृति को अपना।
12
उपवन में
उड़तीं तितलियाँ
लगती ऐसे
आकाश से उतरीं
कोई परियाँ जैसे।
13
लूट ले गया
निर्मोही वो भँवरा
गंध फूल की
देखो समर्पण
मृत्यु की थी वरण।
14
भ्रमर- चोर
चुराकर ले गया
मधुर रस
देखती रही कली
मुरझा गई फिर।
15
चाँदी बिखरी
पर्वत की गोद से
सुरताल में
झर -झर झरता
झरने का वो जल।