बुधवार, 27 मार्च 2019

858


जीवन मेरा 
डॉ.जेन्नी शबनम

मेरे हिस्से में
ये कैसा सफ़र है
रात और दिन
चलना जीवन है,
थक जो गए
कहीं ठौर न मिला
चलते रहे
बस चलते रहे,
कहीं न छाँव
कहीं मिला न ठाँव
बढते रहे
झुलसे मेरे पाँव,
चुभा जो काँटा
पीर सह न पाए
मन में रोए
सामने मुस्कुराए,
किसे पुकारें
मन है घबराए
अपना नहीं
सर पे साया नहीं,
सुख व दु:ख
आँखमिचौली खेले
रोके न रुके
तंज हमपे कसे,
अपना सगा
हमें छला हमेशा
हमारी पीड़ा
उसे लगे तमाशा,
कोई पराया
जब बना अपना
पीड़ा सुन के
संग संग वो चला,
किसी का साथ
जब सुकून देता
पाँव खींचने
जमाना है दौड़ता,
हमसफर
काश ! कोई होता
राह आसान
सफर पूरा होता,
शाप है हमें
कहीं न पहुँचना
अनवरत
चलते ही रहना।
यही जीवन मेरा।
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रविवार, 17 मार्च 2019

857


रमेश कुमार सोनी
1
रोने–हँसाने
जब कोई ना आता
आती है यादें
जनाज़े तक जाती
सुख–दुःख सहेली
2
पत्थर सहे
तराशने का दर्द
मूर्ति हो गया
पीड़ा सुनता रहा
पुनः पत्थर हुआ
3
ख़ुशी गुम थी
मिलता रहा गम
मेलों में  ढूँढा
युगों बीत गए हैं
मैं खुद खोने लगा
4
रोने की अदा
खुश्क रहा दामन
एक फ़साना
दिल में रक्त अश्रु
दिखे तो कैसे दिखे ?
5
युगों से प्यासा
समुद्र बन दौड़ा
अश्रु का घोड़ा
कंठ सूखता गया
प्यार बढ़ता गया
6
श्मशान हुए
ख्वाबों की लाश पाले
भूत-सा फिरा
वो फूल चढ़ा ग
मोक्ष दिया , शुक्रिया ।
7
मिट्टी का जिस्म
दुखों के मेघ दौड़े
शान से बिछे
प्यार के दूब हँसे
बगीचे खिल उठे ।
 8
घटे दायरे
अकेलों की दुनिया
वीरानी डसे
यहाँ–वहाँ भटका
ख़ामोशी लिए लौटा
9
आँधी रो है
रातें हाथ मलतीं 
लहू का दिया
बुझा न पा कभी
दिल जला रखा था
10
रिश्तों की जीभ
मरणासन्न पिता
चुए–टपके
वसीयत हो रही
मरे तो माल बाँटें

..........-0-
रमेश कुमार सोनी
जे.पी. रोड – बसना जिला – महासमुंद , छत्तीसगढ़ , 493554
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