बुधवार, 17 जनवरी 2018

790

मेरी जिंदगी
-भावना शर्मा (पानीपत)

मेरी जिंदगी
नाटक ही तो रही
उम्रभर ये
कठपुतली बनी
जीवन मेरा
पात्र बना इसका
भूमिका रही
कुछ इस तरह             
मैं उम्रभर
अच्छा -बुरा क्या मिला
सोचती रही
एहसास आज ये
मुझको हुआ
जो मर्जी थी उसकी
बस वही था
जैसे चाहा उसने
वैसे मुझको
बनाए रखा कुछ
अच्छी या बुरी
वो मैं नहीं थी कभी
परवाह की
सबकी हर दिन
लापरवाह
सबकी नजरों में
मैं बनी रही
नाराज़ न हो कोई
मुझसे कभी
हँसती हुई कुछ
शब्दों से मैं यूँ
खास चुनती रही
बहुत हुआ
अब चलने भी दो
शुक्रिया करूँ
 मेरे मालिक तेरा
अच्छी या बुरी
मैं तेरी बनी रही
कब पूरा हो
नाटक ये तुम्हारा
आना चाहती
मैं पास तेरे अब
सुनते ही ये
बात वो मेरी हँस
देता है कुछ
मुझ पर वो मेरा
महान सूत्रधार  ।    

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

788

मंजूषा मन
1
जीवन से हारे हैं
शिकवा क्या करते
अपनों के मारे हैं।
2
धोखा ही सब देते
अपने बनकर ही
ये जान सदा लेते।
3
रोकर भी क्या पाते
गम में रोते तो
रो -रोकर मर जाते।
4
उम्मीद नहीं टूटी
तेरे छलने से
हिम्मत भी है छूटी।

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