गुरुवार, 8 जून 2017

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1-कमला  निखुर्पा
1
थी मैं अभिधा 
गिनाए जो तुमने
लक्षण मेरे 
बन गई व्यंजना 
खुद को पहचाना ।
-0- 
2-रामेश्वर काम्बोजहिमांशु
1
मैं निरुत्तर
तेरा नेह-विस्तार
धरा से नभ
नहीं पा सका पार
भिगो रही बौछार ।
-0-
रमेश कुमार सोनी  
1
नदी अकेली
प्यास बुझाने दौड़ी
बस्ती बसाती
प्रदूषित हो जाती
बचाओ नहीं बोली
2
धूप की कूची
भित्ति चित्र पेड़ों के
रोज बनाती
सदा से ही अधूरी
छोटी –बड़ी हो जाती

-0-

10 टिप्‍पणियां:

Rekha ने कहा…

सभी ताँका सुंदर व्यंजक भाव -प्रधान !!!
सादर बधाई !

Sudershan Ratnakar ने कहा…

सभी ताँका बहुत सुंदर

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Sabhi rachnayen gahan abhivykti liye,sabhi ko hardik badhai...

बेनामी ने कहा…

एक से एक बढकर ।

Dr.Purnima Rai ने कहा…

आ.कमला जी
आ.रामेश्वर सर जी
आ.रमेश सोनी जी
आप सभी ने विशिष्ट भावनाओं की उम्दा अंदाज से प्रस्तुति की है...आप सभी को नमन !!

ज्योति-कलश ने कहा…

बहुत अच्छे ताँका !
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई !!

Pushpa mehra ने कहा…


सभी ताँका बहुत सुंदर हैं,बधाई |

पुष्पा मेहरा

Krishna ने कहा…

बहुत बढ़िया सभी तांका।
आप सभी रचनाकारों को बहुत बधाई।

सुनीता काम्बोज ने कहा…

सभी ताँका बहुत सुंदर मनभावन ..आप सबको हार्दिक बधाई ।

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

सभी तांका बहुत अच्छे हैं...| मेरी बधाई...|