रविवार, 27 सितंबर 2015

पावन साथ तुम्हारा



डॉहरदीप सन्धु
1
( चित्र:गूगल से साभार)
खोए रिश्ते मिलते
सूखे बागों में
पाटल मन के खिलते
2
हम जिस भी ओर चले
पथरीली राहें,
काँटों के छोर मिले।
3
रिमझिम बरसा पानी
नैनों की नदिया
कहती करुण कहानी।
4
कलकल बहती धारा
निर्मल जल -जैसा
पावन साथ तुम्हारा ।
5
मौसम सब प्यारे हैं
माही जब मिलता
तब जश्न, बहारे हैं
6
तुम धीरे से बोलो
मन की गगरी में
रस भावों का घोलो
-0-

गुरुवार, 24 सितंबर 2015

एक पुस्तक



प्रियंका गुप्ता
1       
हरसिंगार
झरे मुस्काते हुए
थे इसी वास्ते
खुशबू फैला गए
किसी काम आ गए ।
 -0-

2-अनिता मण्डा

एक पुस्तक
जिसकी ज़िल्द पर
बनी तस्वीर
चाँद-सूरज वाली
रोज बदले
सबक पुस्तक का
नहीं बदले
ऊपर की तस्वीर
सूरज वाली
पर रंग बदले
ये सूरज भी
सोने जैसा चमके
और कभी तो
सियाह रंग का ये
रंग ले लेता
हर किसी की यहाँ
रोज पुरानी
हो जाती ये कहानी
आखिरी पन्ना
छोटी-बड़ी ले शक्लें
रूप बदले
रहता कभी-कभी
नदारद सा
क्या कोई नादाँ बच्चा
इसको फाड़ देता।
-0-

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

गुलामी का एक दिन

[ यह आयोजन प्रति वर्ष पश्चिमी देशों ( अमेरिका, कैनेडा, ऑस्ट्रेलिया ) में स्कूलों में मनाया जाता है। जब मैंने इसे पहली बार देखा तो मन विचलित हो गया है। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या और क्यों हो रहा है ? बच्चों को क्या सिखाया जा रहा है ? क्या उनको ये अहसास करवाया जा रहा है कि गुलामों का जीवन कैसा होता है या गुलामों से कैसा व्यवहार करना चाहिए ? लोगों ने जब इसका विरोध किया तो कुछ स्थानों पर इसे प्रतिबन्धित कर दिया गया है । कहीं यह अब भी जारी है। मैंने अपना फ़र्ज़ जानकर इसकी जानकारी इस हाइबन के रूप में आप सबको दी है। फैसला हमें करना है कि क्या ये सही है या नहीं ?]
डॉ हरदीप कौर सन्धु

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डॉ. हरदीप कौर संधु


सर्दियों की गुनगुनी सी धूप वाली सुबह। घंटी बजते ही विद्यार्थी प्रार्थना सभा के लिए इकट्ठा होने लगे। उनके चेहरों पर सुबह की ताज़गी जैसी चमक थी। आज़ाद हवाओं में फूलों -सी महक थी। सभी इस नए ताज़े दिन को अपने ही रंग में रँगने के लिए तैयार थे। बाहरवीं कक्षा का आज स्कूल में आखिरी दिन था। उनकी आज नीलामी थी। हर विद्यार्थी ने आज का दिन किसी का गुलाम बनकर रहना था -गुलामी के एक दिन जैसे।
    कुछ ही पल के बाद नीलामी शुरू हो गई थी। बावीं कक्षा के विद्यार्थी अपनी-अपनी योगयता को प्रटा करते हुए एक -एक करके अपने -आप को पेश कर रहे थे। एक अध्यापक बोली लगा रहा था। बाकी अध्यापक तथा विद्यार्थी बोली दे कर अपना -अपना गुलाम खरीद रहे थे।एक दिन के लिए बने मालिक अपने गुलामों से मन चाहा काम करवाने की योजना बना रहे थे। 
स्कूल के साझे फंड के लिए पैसा जमा हो रहा था , परन्तु ये घटनाक्रम मेरी सोच को कचोट रहा था। कहते हैं कि अगर हज़ारों वर्ष सूर्य न भी उगे तभी लोग जी लेते हैं ;मगर किसी की गुलामी करना, अपने ज़मीर को मारकर बेगैरत ज़िंदगी का एक दिन भी गुज़ारना बहुत कठिन होता है। गुलामी के कड़वे सच को आँखों से ओझल कर आज अलबेले मनों की सोच को दूषित किया जा रहा था। अब मेरी सोच के तलवे जलने लगे थे। मानव- तिहास को कलंकित करने वाली ब्रिटिश साम्राज्य की कुलटा चाल की पैदायश 'गुलामी' को खत्म करने के लिए एक ओर ढेर कोशिशें हुईं और शायद आज भी हो रही हैं; मगर दूसरी ओर ऐसे दिन मनाकर मानवता को कुचलती विचारधारा को यहाँ आज फिर से जीवित किया जा रहा हैअचानक मुझे किसी पिंजरे में बंद तोते का रुदन सुनाई देने लगा। अब मैं सहज होकर भी सहज नहीं थी।
लम्बी उड़ारी -
पिंजरे वाला तोता
देखे अम्बर।



रविवार, 20 सितंबर 2015

दरिया ख्वाबों का



डॉ भावना कुँअर
1
गूगल से साभार
पूजा- सा था चाहा
फिर क्या खोट रहा
जो दूर बना साया ।
2
अब किससे दर्द  कहें
बदले फूलों के
काँटों में साथ रहे ।
3
कैसे ये बात कहें
दरिया ख्वाबों का
हम बिन पतवार बहे।
4
हमसे  क्यों लोग जले
घिरकर के ग़म से
हम खुद ही दूर चले ।
5
कलियाँ  तो रोज खिलीं
हमको झलक कभी
तेरी  ना तनिक  मिली ।
6
चातक -किस्मत पाई 
प्यार -भरी  बूँदें
दामन में  न समाई।
7
पास अगर आओगे
कह देते हैं हम-
फिर जा, ना पाओगे।
8
बाहों में यूँ लेना
तेरी फ़ितरत है
मदहोश बना देना।
9
बोलो कब आओगे ?
उखड़ रही साँसें
सूरत दिखलाओगे ?
10
किरणों -संग रवि चला
पंछी शोर  करें
मन एकाकी मचला ।
11
थे सब मीत किनारे
जाने फिर कैसे
हम लहरों से  हारे ।
-0-