मंगलवार, 23 जून 2015

सूचना




        हिन्दी हाइकु से जुड़े सभी साथी अपने हैं, अपने परिवार के हैं।फिर भी कुछ साथी समय-समय पर कुछ ऐसा कर जाते हैं , जो दु:ख का कारण बनता है। हमारे एक साथी ने अपने संग्रह की  भूमिका में बिना नामोल्लेख के अगस्त 2012 में प्रकाशित हमारे सेदोका -संग्रहअलसाई चाँदनी से लगभग 13 पंक्तियाँ ज्यों की त्यों उतार लीं ।यही नहीं ऊपर की पंक्तियाँ भी डॉ भगवत शरण अग्रवाल जी के हाइकु -काव्य विश्वकोश से इसी तरह उतार कर एक पृष्ठ पूरा कर लिया ।
    यह अशोभनीय कार्य है । यहाँ उनके नाम का उल्लेख ज़रूरी नहीं।उन्हें हम हिन्दी हाइकु और त्रिवेणी से हटा रहे  हैं। हमारे विरोध करने पर उन्होंने अपना माफ़ीनामा भेजा है। यदि किसी के कथन का कहीं उल्लेख करते हैं, तो नाम देने में क्या लज्जा !








10 टिप्‍पणियां:

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

दुखद

ंManju Mishra ने कहा…

आदरणीय रामेश्वर जी
नमस्कार

गलती तो गलती ही है, चाहे जाने में हो या अनजाने में। लेकिन आपने अपने लेख में उस व्यक्ति का नाम न लिख कर एक सहृदयता और अपनी सुलझी हुयी विचारधारा का परिचय अवश्य दिया है। आपने इस प्रकरण को जिस तरह संभाला है उसके लिए आपके प्रति ह्रदय में सम्मान और बढ़ गया है। वरना आजकल तो लोग और खास तौर पर टिप्पणी कर्ता तुरत फुरत चोर, नीच और पता नहीं क्या तमगे देना शुरू कर देते हैं।

सादर
मंजु

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

Aik lekhak jo apni pustak chhpvaa rahaa hai aur vah kisi anyaa ki pustak se likha copy paste kar rahaa hai to yah jaanbhoojh ke kee gai galtiyon me hai.. chhote bacche to nahi honge vah...us pustak kee rachnaaye bhi sandeh ke daayre me hai . Ki vo poori unhi kee hai yaa idhar udhar se Lee gai hai.... beshak Rameshwar bhaisaahab ne udaartaa ka parichay diya ..

सुनीता शर्मा 'नन्ही' ने कहा…

ज्ञान प्राप्ति का मार्ग दुर्गम सही असंभव नहीं और सच्चा रचनाकार वही जो अपनी मंज़िल का मार्ग स्वयं तय करे और दूसरों का प्रेरणास्त्रोत बने । साहित्य चोरी नवीन नहीं है ,अक्सर पाठक ठगा रह जाता है जब वह एक ही प्रकार की सामग्री कई जगह पढता है और जब उसको असलियत निकालना मुश्किल हो जाता है तब वह लेखकों को संपर्क करता है और यहीं पर सर्वाधिक दुःख असली रचनाकार को होता है । ऐसी परिस्तिथि में स्वयं सही साबित करने में मासूम लेखक के अंतर्मन की पीड़ा कोई नहीं समझ सकता । आदरणीय सर हिमांशु जी ,कथित साहित्यकार चोरी करने वाले का नाम आप सार्वजानिक न करना चाहे वो दूसरी बात है किन्तु जबतक नाम न पता चले तो ऐसे लोगों के खिलाफ जागरूकता अभियान कैसे चलेगा ? अपनी आत्मसुरक्षा की दृष्टि से भी और समाज हित में भी मैं हमेशा ऐसे लोगों नाम उजागर करती हूँ ,सादर नमन ।

Amit Agarwal ने कहा…

I appreciate the way you have handled this sad situation...shows your generosity..!

ज्योति-कलश ने कहा…

मन को व्यथित करती स्थिति का ऐसा सहृदय समाधान आप ही दे सकते हैं ..नमन आपको !

Manju Gupta ने कहा…

snpaadk dway ki mahaantaa hae rchnaa chori krne vaale kaa naam nhin likhaa . aapme unhen nikaal diyaa saraahaniy kadm .

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

जो हुआ है, शर्मनाक और अफसोसजनक है...| व्यथित करती हैं ऐसी घटनाएँ...|
आदरणीय काम्बोज जी ने अपने विशाल ह्रदय का परिचय देते हुए उनका नाम गुप्त रखा, इसके लिए साधुवाद...|

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

ओह! बेहद अफसोसनाक है. पुस्तक प्रकाशित करवाने वाले साहित्यकार ऐसा करेंगे तो फिर किससे क्या अपेक्षा. यह तो अच्छा है कि काम्बोज भैया को पता चल गया तो यह सबकी नज़र में आ गया. भले ही यहाँ नाम का जिक्र नहीं किया गया लेकिन, जो भी सज्जन हैं अब दोबारा ऐसी गलती न करेंगे .

Sonneteer Anima Das ने कहा…

आप वास्तव में साहित्य धर्मी है सर 🌹🙏