गुरुवार, 14 मई 2015

बलती चिता

कमला घाटाऔरा

स्कूल की छुट्टियों में मैं अपनी बहन के साथ अपने गाँव जाती थी। वहाँ हमारी दो सहेलियाँ बन गयी थीं। दोनों बहुत मिलनसार, हँसमुख, दरियादिल और घी- मक्खनों की पली। बहुत प्यारी ……देख कर मन खुश हो जाता। घर आती तो रौनक लग जाती। अपनी लुभावनी बातों से हमें खूब हँसाती। जब भी मिलने आई खेतों की ताज़ा सौगाते साथ होती। 
जब दोबारा गाँव जाना हुआ तो सुना दोनों की शादी हो चुकी थी। मन उदास हो गया। लेकिन जब सुना उन में से छोटी बहन तो दुनिया से विदा हो चुकी है। सुनकर बहुत दुःख हुआ। विवाह हो जाने पर सखियों का कभी न कभी तो मिलन हो सकता है; लेकिन जो दुनिया से ही चला गया ,वह कहाँ मिल पाता है। आँखें भर आईं। लेकिन इस से भी ज्यादा दुःख की  वह बात थी, जो उसके दाह संस्कार के प्रत्यक्षदर्शी ने सुनाई। वह यह थी कि मृत्यु के समय वह गर्भवती थी। मृत्यु का कारण उस उम्र में बच्चों के जानने का विषय नहीं था। गाँव में ऐसी सुरक्षा कहाँ उपलब्ध होती है चेकअप की।बच्चों का जन्म दाई ही कराती है। उस व्यक्ति ने जब बताया कि उसकी कोख का बच्चा चिता से उछल कर बाहर जा गिरा था…… शायद वह जीवित रहा हो। यह सुनकर तो  मन क्रंदन कर उठा।

बलती चिता
दाने जैसे भुँजती
उछली जिंद।