मंगलवार, 31 मार्च 2015

तू हमको भूले जा



1-सपना मांगलिक

1

दिल को तड़पाती है

आग जुदाई की

इस कदर जलाती है ।

2

डूबे हैं मस्ती में

बैठे वो जबसे

आँखों की कश्ती में ।

3

हर सितम कबूले जा

याद रखेंगे हम

तू हमको भूले जा।

4

चैन  चुराने वाले

माफ़ किया तुझको

रोज़ सताने वाले ।

5

खुद  दीप जलाता हूँ

परवाना हूँ  ना !

यूँ इश्क कमाता हूँ ।

6

पगली इक दीवानी

आज बनी है जो

इन आँखों का पानी ।

7

 दिल को बहला देना

ढूँढ रहा तुझको

 पीड़ा सहला देना ।

-0- 
एफ-659 कमला नगर आगरा-282005                               
ईमेल sapna8manglik@gmail.

सोमवार, 30 मार्च 2015

मीठा सपना



डॉ सरस्वती माथुर
         
           जब भी मैं कॉलेज जाने के लिए कार निकालती हूँ , तो  जाने कहाँ से पाखी- सी उड़ती वो लड़की मेरे गेट  के पास आ खड़ी होती है  कार निकालते ही मेन गेट बंद कर वो दमकती आँखों से मुझे देखती रहती है  मानो कह रही हो कि दीदी आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं !कुछ दिन वो बीच में दिखी नहीं,तो मैं ही  बैचैन हो ग थी इसलिए उसे देखते ही बोली -इतने दिन  कहाँ रही री छौरी,दिखी नहीं ?
          वो मेरी कार के पास आकर राजस्थानी  भाषा  में बोली-
          "नानी के गयी ही वा है न जो  नाल सूँ   गयी छी वाकी हड्डी टूटगी छी न  ई वास्ते माँ के लारे देखबा ने गयी छी ( नानी के ग थी वो सीढी से गिर गयी थी न, उनकी हड्डी टूट ग थी इसलिए माँ के साथ देखने को ग थी )
          'अच्छा अच्छा ठीक है 'मुझे जल्दी थी जाने की, पर वो बिलकुल मेरी कार से सटी खड़ी थी , हाथों में कुछ छिपा रखा था तो मैं समझ ग थी कि कुछ दिखाना चाहती है ! दरअसल कुछ दिन पहले उसे मैंने कहा था कि लड़कियों को पढ़ना-  लिखना चाहिए, तो वो बोली थी कि दीदी माँ भी कह रही थीं  कि तुझे खूब पढ़ाऊँगी ,अभी दुपहर वाले सरकारी स्कूल में पढ़ती  हूँ ।
इस लड़की की आँखों में अलग सी चमक दिखती थी मुझेउसकी माँ मेरे किरायेदार के यहाँ रोज काम करने सुबह के समय आती थी ,तो उसे भी संग में  ले आती थी ! कुछ दिन पहले ही मैंने उसे पढ़ने को कुछ बाल पत्रिकाएँ दी थी मुझे उसकी माँ ने बताया था कि  वह उन्हें  बड़ी लगन से पढ़ती थी
           "हाथ में क्या ला है री ,क्या छिपा रखा है ?मेरी बात खत्म हो उससे पहले ही उसने हाथ बढ़ा एक तुड़ा मुडा कागज पकड़ा दिया,मैंने कागज खोलकर देखा उसमें  लिखा था -"किताबें मुझको लगती हैं  प्यारी प्यारी पढ़ लूँगी मैं मिलते ही सारी की सारीकुछ किताबें और पढ़ने के लिए दे दो न दीदी जी  !"
           मैं हतप्रभ  सी उसे देखती रही ,वो सात वर्ष की थी और ये कवितामयी पंक्तियाँ टेढ़ी- मेढ़ी शैली में उसका भविष्य बता  रही थी  ? उसे जल्दी कुछ किताबें  देने की बात कहकर मैं कॉलेज की ओर चल दी
          कार के शीशे से पीछे झाँका तो देखा वह मेरा मेन गेट बंद कर मुझे जाते निहार रही थी और मैं सोच रही थी कि सच है यह कि बाल मन में ईश्वर बसते हैं
          बंजर दिल
          स्नेह सुधा से सींचा
           तो हरा हुआ
-0-

शुक्रवार, 27 मार्च 2015

पहला पाठ (हाइबन)

रामेश्वर काम्बोज हिमांशु’ 
छोटी सी जगह.……  छोटा सा स्कूल .... जहाँ सबको सबके बारे में छोटी-मोटी जानकारी रहती ।उस स्कूल में एक अध्यापक के रूप में मेरी नई न्युक्ति हुई थी। पढ़ाने के साथ -साथ मेरी एम. ए. की पढ़ाई भी जारी थी।जब भी कोई खाली कालांश होता, मैं अपने अध्ययन में जुट जाता । मेरे छात्र भी मेरी पढ़ाई के बारे में अवगत थे ।सभी छात्रों को कुछ समझ में न आए ,तो कक्षा से बाहर भी पूछने की छूट थी। सबसे युवा शिक्षक होने के कारण और हर समय छात्रों की समस्याओं का निवारण करने के कारण छात्रों को उल्लू गधा आदि विशेषण देने वाले अपने साथियों की आँखों में खटकता था।सीधा-सपाट बोलने की आदत भी इसका कारण थी।छात्रों में मेरी लोकप्रियता ने इस ईर्ष्या को और बढ़ावा दिया था । अपनी ईर्ष्या के कारण एक -दो साथी कुछ न कुछ खुराफ़ात करते रहते, जिसके कारण मैं आहत होता रहता था । इसी कारण स्कूल के खाली समय में मेरी पढ़ाई बाधित होने लगी।कई दिन तक ऐसा हुआ कि मैं पढ़ाई न करके चुपचाप बैठा रहता।मुझे नहीं पता था कि मेरे छात्रों की नज़र मेरी इस उदासीनता पर है । 
        कक्षा आठ की एक छात्रा ने एक दिन हिचकचाते हुए कहा, गुरु जी, आपसे एक बात कहना चाहती हूँ । आप मेरी बात का बुरा तो नहीं मानेंगे।’ कहिए, मैं बुरा नहीं मानूँगा।उसकी हिचक को दूर करने के लिए मैं बोला।  मैं कई दिन से देख रही हूँ कि आप खाली पीरियड में चुपचाप बैठे रहते हैं ।अपनी एम० ए०की तैयारी नहीं करते हैं।शायद इसका कारण हमारे कुछ शिक्षकों द्वारा आपके खिलाफ़ दुष्प्रचार करना है। थोड़ा साँस लेकर वह फिर बोली, आपके इस तरह पढ़ाई छोड़ देने से किसका नुकसान है? सिर्फ़ आपका ! आप  नर हो न निराश करो मन को कविता हमको पढ़ाते रहे हैं और सबकी हिम्मत बढ़ाते रहे हैं ; लेकिन आप खुद क्या कर रहे हैं- कहकर उसने सिर झुका लिया ।
    मेरा चेहरा तमतमा गया । किसी विद्यार्थी की इतनी हिम्मत ! मैंने अपने आवेश को सँभाला और कहा-आज के बाद तुम मुझे खाली समय में चुपचाप बैठा नहीं देखोगी।’ इसके बाद कुछ ऐसा ही हुआ, जिसका परिणाम एम. ए. की परीक्षा में 70 % अंक या प्रथम श्रेणी के रूप में मिला। केन्द्रीय विद्यालय में शिक्षक और प्राचार्य के रूप में इस उपलब्धि ने मेरा मार्ग सरल किया। नन्हीं छात्रा के इस योगदान को मेरा रोमरोम  आज भी महसूस करता है । मैं उस गुरु के दिए इस पहले  पाठ को कभी नहीं भूला ।
पहला पाठ -
माँ का हाथ पकड़ 
चलना सीखे। 

मंगलवार, 24 मार्च 2015

रविवार, 22 मार्च 2015

तुमको पा लूँ

सपना मांगलिक
1
तुमको पा लूँ
या मौत को फिर मैं
गले लगा लूँ
जालिम है दुनिया
मैं सर क्यों झुका लूँ !
2
दिल रोशन
बस तुम्हें देखके
होता साजन,
तू जो नहीं तो दीये
बुझे बिन कारण
3
रात होती है
कहाँ उसमें वैसी
बात होती है ,
नीदों में न ख्वाबों में
मुलाकात होती है
4
ख्वाब ये तेरा
था कल तक मेरा
हुआ सवेरा
टूटे सब सपने
छाया घोर अँधेरा
5
घुटा -घुटा -सा
कुछ है मन में जो
दबा दबा- सा
घर जहाँ ख्वाबों का
वो नगर जला है ।
6
इश्क- गुबार
कैसे करार
है इन्तजार
वो दिखे तो बहार
मिले जी को करार
7
सिन्धु गहरा
मौज उसकी मैं ,वो
साहिल मेरा
मिलने जाऊँ कैसे
है तूफानों का डेरा
8
वो कैसा होगा
सपनों -जैसा होगा
जो मेरा होगा
घूमेगा इर्द- गिर्द
कोई  भँवरा होगा
9
यही जुस्तजू
हो तू मेरे रूबरू
हुआ सुर्खरू
इसी अदा ने लूटा
है दिल में बस तू
10
गुनाहगार
कहूँ या कहूँ तुझे
असरदार
है रकीब तो क्यूँ ये
दिल तलबगार
11
प्यार या रार
जीतता सदा ही वो
मैं जाती हार
मेरी हार उसको
प्यार का उपहार
12
जब तू मिला
सच दिल का मेरे
चमन खिला
हुई खता बोलो क्या
रूठे तुम क्यूँ भला
-0-

मोबाइल 9548509508