गुरुवार, 12 जून 2014

पाहुन हवा



1-डॉ सरस्वती माथुर
1
झूल रही हूँ
यादों के पलने में
पाहुन हवा  
सखी-सी देख रही
आँखों की भीगी कोर ।
2
यादों  का सूर्य
मन- नभ उतरा
डूबेगा कब ?
सोचती-सी डूबी हूँ
जीवन - सागर में ।
3
पतझड़ में
खोया खोया मौसम
यादों के  पात
हवाओं में डोलते
भेद सब खोलते ।
4
यादों की वर्षा
उदास -सा मौसम
भीगी -सी हवा
बीते दिनों के संग
भीग रहा है मन
-0-     
2-शान्ति पुरोहित
1
कटते वृक्ष
पहाड़ भी कटते
जल विनाश
प्रकृति का दोहन
धरा विनाश करे
-0-

6 टिप्‍पणियां:

Subhash Chandra Lakhera ने कहा…

अति सुन्दर, बेहतरीन ताँका सृजन के लिए डॉ सरस्वती माथुर और शान्ति पुरोहित जी, आप दोनों को हार्दिक बधाई !

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

यादों की वर्षा
उदास -सा मौसम
भीगी -सी हवा
बीते दिनों के संग
भीग रहा है मन
Bahut khubsurat kaha hai aapne hardik badhai...

Krishna ने कहा…

अति सुन्दर ताँका प्रस्तुति के लिए आप दोनों को बहुत-२ बधाई !

Manju Gupta ने कहा…

कल्पनाओं -अनुभवों का यथार्थ चित्रण तांका में अद्वितीय है .

डॉ सरस्वती माथुर और शान्ति पुरोहित जी, आप दोनों को हार्दिक बधाई !

ज्योति-कलश ने कहा…

यादों का सूर्य ...सुन्दर है सरस्वती जी ..

कटते वृक्ष ....सुन्दर ,सार्थक प्रस्तुति शान्ति पुरोहित जी
हार्दिक बधाई आप दोनों को !!

सादर
ज्योत्स्ना शर्मा

sushila ने कहा…

सुंदर भाव और सुंदर शिल्प। बधाई दोनों रचनाकारों को।