शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

अपनों की सौगाते!

ज्योत्स्ना प्रदीप
1
कुछ ऐसे मंज़र थे
पुष्पों  के द्वारे
अपनों के खंजर थे !
2
आँसू के दिन-रातें
देखो तो इनको
अपनों की सौगाते!
3
वो क्या कर जाते है
शीशे के घर पे
पत्थर बरसाते हैं!
4
अपने ये काम करें
खुद के ही घर की
खुशियाँ नीलाम करें
5
मापा किसने मन को
इस युग में तो बस
सब कुछ माना तन को। 
6
बेजानों में भी मन,
देखा दिल इनका,
पत्थर में क़ैद अगन।
7
सागर की गहराई
कंकर ने जानी
बस लौट नहीं पाई।

-0-

10 टिप्‍पणियां:

Manju Gupta ने कहा…

सभी रचनाएँ उत्कृष्ट लगी
बधाई

Krishna ने कहा…

एक-एक माहिया बहुत बढ़िया ज्योत्स्ना प्रदीप जी....बधाई !

ज्योति-कलश ने कहा…

bahut bhaavpuurn sundar maahiyaa hain aapake ...ek se badhakar ek ..
सागर की गहराई
कंकर ने जानी
बस लौट नहीं पाई। ...laajavaab ,,,haardik badhaaii !!

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत ही सुन्दर माहिया ! सभी एक से बढ़कर एक !!
हार्दिक बधाई आपको ज्योत्स्ना प्रदीप जी !!!

~सादर
अनिता ललित

Jyotsana pradeep ने कहा…

manju ji,krishnaji,jyotiji,anitaji...protsahit karne ke liye hridya se aabhaar

Unknown ने कहा…

bohot hi sarthak mahiye likhe hai jyotsna pradeep ji aapne....khaskar ye to bohot umda hai...
सागर की गहराई
कंकर ने जानी
बस लौट नहीं पाई।

Unknown ने कहा…

bohot hi sarthak mahiye likhe hai aapne jyotsana pradeep ji....visheshkar ye mann ko choo gaya....
सागर की गहराई
कंकर ने जानी
बस लौट नहीं पाई।

Pushpa mehra ने कहा…


bejanon men bhi man,dekha dil inaka ,pathar men bhi kaid agan.
bilkul satya hai. jyotsna ji apako badhai sabhi mahiya bahuthi achhe likhe hain.
pushpa mehra.

Jyotsana pradeep ने कहा…

puuushpa ji,shivikaji...hridy se aabhaar ...hausla badhane ke liye

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

कुछ ऐसे मंज़र थे
पुष्पों के द्वारे
अपनों के खंजर थे !

आँसू के दिन-रातें
देखो तो इनको
अपनों की सौगाते!

दिल को तकलीफ होती है, पर ज़िंदगी की हकीकत है ये...| अपने ही सबसे ज्यादा दर्द देते हैं...|
बधाई...|