बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

निर्व्याज हँसी !


डॉ सुधा गुप्ता


पीले फूलों से
लदा-फँदा वसन्त
तितली पीछे
दौड़ता,कनेर का
मधु चूसता
सीपी –कौड़ी बीनता
फूल –पाँखुरी
किताबों में सुखाता
न जाने कहाँ
चुपके से खो गया !
सुर्ख़ गुलाब
खिले खिलते गए
मौसम जो था !
डाली पर झूमते
खिलखिलाते
महक से लुभाते
लोभी भँवरा
पास था , इतराते
वक़्त की मार
रंग-रूप खोकर
मुरझाकर
धूल की भेंट चढ़े  !
शीत-प्रकोप
हाड़-हाड़ कँपाता
घना कोहरा
नज़र नहीं आता
दूर-पास का
न कोई हमराही
न संग –साथ
दुर्वह बोझ ढोते
अकेले रास्ते
अब खिली सेवती
नि्र्व्याज हँसी !
रोम-रोम भीगा है !
आँसुओं का डेरा है ! !
-0-
24 फ़रवरी , 2014


3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति

ज्योति-कलश ने कहा…

समय की गति को निरूपित करता बहुत सुन्दर चोका ...बधाई दीदी
सादर नमन वंदन के साथ
ज्योत्स्ना शर्मा

Pushpa mehra ने कहा…

phool sa shaisav aur basant sa hansata -khelata yauvan beetata
jata hai rahon ki udasi phir prakriti ke upadan hi to duur karat hain. sudha didi ji appake dvara rachi choka bahut sargarbhit hai.
badhai.
pushpa mehra.