सोमवार, 27 जनवरी 2014

अंदर दागदार

ताँका
डॉ अनीता कपूर
1
ये जो अपने
बनते हैं यूँ ख़ास
ओढ़े चादर
ऊपर से उजली
अंदर दागदार ।
2
चारों तरफ
उग आए है रिश्ते
गिरगिटों-से
संवेदनाओं-लदी
लताएँ मर रही ।
 -0-
सेदोका
डॉ अनीता कपूर
1
बंदूकें हो या
कागज़ और स्याही
ईमान भयाक्रांत
देखके स्वार्थी
इरादों की शक्ल में
गोली व कलम को
2
अपना कद
गर लम्बा करते
मेरे कन्धे के बिना
तय है यह-
आज भी हमारे वो
रिश्ते रेशमी होते
3
रिश्तों की घड़ी
आज भी दीवार पे
यूँ ही है सूनी खड़ी
स्वार्थी सुइयाँ
लम्हे समेट भागीं
घायल हुई घड़ी
4
मानवीयता
बनी है कब्रगाह
घनघोर चुप्पी की
चादर ओढ़े
रिश्तों ने बेशर्मी के
टाँकें लगा दिये हैं

-0-

2 टिप्‍पणियां:

ज्योति-कलश ने कहा…

'गिरगिटी रिश्ते' , 'भयाक्रांत ईमान ' , 'रिश्तों की घड़ी'....सभी रचनाये बहुत सुन्दर हैं ...
अपना कद
गर लम्बा करते
मेरे कन्धे के बिना
तय है यह-
आज भी हमारे वो
रिश्ते रेशमी होते।....बहुत खूब !!

मंजुल भटनागर ने कहा…

मानवीयता
बनी है कब्रगाह
घनघोर चुप्पी की
चादर ओढ़े
रिश्तों ने बेशर्मी के
टाँकें लगा दिये हैं-----शब्द सार्थक -सेदोका बधाई ढेर सी अनीता जी