शनिवार, 11 जनवरी 2014

शीत लहर

डॉ सुधा गुप्ता
हेमन्त चक्रवर्ती
1
शीत लहर:
कोहासे का क़हर
प्राण हरती
हवा है विषकन्या
हेमन्त चक्रवर्ती !
-0-

ख़बर
2
नदिया जमी
बाबुल की खबर
नहीं जो मिली !
मन ही मन रोती,
दुनिया कहे सोती ।
3
शीत की मारी
ठिठुरी हैं ख़बरें
छतें वीरान
मासूम बेज़बान
कमरों में  क़ैद हैं ।
4
शीत - ठिठुरी
ख़बरें हैं बेचारी
ओस में भीगी 
लावारिस पड़ी  हैं
बन्द दरवाज़े पे !
-0-
सर्वहारा
5
घिरी  जो घटा
सूरज डर, छिपा,
झुग्गी का बच्चा 
शीत से बड़ा रोया
धूप का कोट खोया ।


6
आ जमा हुए
बुझी भट्टी के पास,
ताप की आस-
बेघर, लावारिस
आदमी और  कुत्ते ।
7
रैन- बसेरा
न अलाव –सहारा
रात बिताई
माघ- नभ के तले
तय था मर जाना ।
8
दीन सूरज
मार खा तुषार की
दूर जा छिपा
ठिठुरे खड़े दिन
भीगे कपड़े –लत्ते !

-0-

15 टिप्‍पणियां:

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

हवा विषकन्या -बहुत ही सुन्दर ....हेमन्त जी !

~सादर
अनिता ललित

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बाबुल की याद में जमी नदिया, शीत लहर की मारी ख़बरें, धूप का कोट, दीन सूरज -सभी बिम्ब बहुत-बहुत सुन्दर। सुधा दीदी जी की कलम से खींचे गए शीत ऋतु के बोलते चित्र 'ताँका' के रूप में बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति बन पड़े हैं। एक-एक ताँका अपने सन्देश का मानो स्वयं चित्र खींच रहा हो। दीदी जी को व उनकी उत्कृष्ट लेखनी को नमन !

~सादर
अनिता ललित

shashi purwar ने कहा…

sudha ji sabhi tanka acche lage , badhai aapko sheet lahar aaj chhayi hui hai , .......

Krishna ने कहा…

शीत का बड़ा खूबसूरत चित्रण.... आपका प्रत्येक ताँका लाजवाब है .... बधाई !

Subhash Chandra Lakhera ने कहा…

यूं तो सभी तांका बेहतरीन हैं लेकिन यह तांका तो सर्दी की ठिठरून
का अहसास भी करा गया : " आ जमा हुए / बुझी भट्टी के पास /,ताप की आस-
बेघर, लावारिस /आदमी और कुत्ते । " यह तांका इस तथ्य को एक बार
फिर रेखांकित करता है कि " जहाँ न पहुंचे रवि, वहाँ पहुंचे कवि। "
डॉ सुधा गुप्ता जी की सूक्ष्म दृष्टि को नमन।

Manju Gupta ने कहा…

सारे सुन्दर तांका .

बधाई

sushila ने कहा…

शीत और कुहासे का सुंदर वर्णन।
धूप के लिए कोट का रूपक बहुत अच्छा लगा।

Pushpa mehra ने कहा…

raain basara,na alav- sahara ,rat bitai, magh-nabh ke tale ,tay tha
mar jana. samanyitar jeevan ki karun vyatha ko ujagar karta tanka
marmsparshi hai.didi apako hardik badhai.
pushpa mehra .

Shashi Padha ने कहा…

शीत के विभन्न रूप और पूरी प्रकृति का उन से जूझना --- यही अहसास हुआ आपकी रचनाओं को पढ़ कर | आपकी सूक्ष्म दृष्टि को नमन |

Shashi Padha ने कहा…

शीत की कठोरता और पूरी प्रकृति का इस से जूझना --- इस मर्म का अहसास देती आपकी रचनाएँ बहुत उत्कृष्ट लगीं | आपकी सूक्ष्म दृष्टि के लिए आपको नमन |
सादर ,
शशि पाधा

Jyotsana pradeep ने कहा…

sheet ke sundar tankon ka isse behtar chitran milna bohot mushkil hai.....aap to maun prakrati ko bhi spandit kar deti hai sudha ji...

Jyotsana pradeep ने कहा…

sheet ka isse se sundar chitran milna mushkil hai....aap ne toh maun sheet me bhi spandan bhar diya hai sudha ji.....prernadayi rachna

ज्योति-कलश ने कहा…

शीत लहर के कहर को बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति दी है आदरणीया दीदी ने ...सभी तांका बहुत सुन्दर हैं लेकिन ..बाबुल की खबर न मिलने पर उदास बिटिया , धूप का कोट , बुझी भट्टी और तुषार से मार खाया सूरज ...अप्रतिम हैं |
सादर नमन वंदन के साथ ...
ज्योत्स्ना शर्मा

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सुधा जी की लेखनी सदैव मन को मोहती है. सभी ताँका बहुत सुन्दर है, पर यह एक मुझे बेहद पसंद आया...

शीत लहर:
कोहासे का क़हर
प्राण हरती
हवा है विषकन्या
हेमन्त चक्रवर्ती !

बहुत खूबसूरत बिम्ब प्रयोग. सुधा जी को सादर बधाई.

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

आदरणीया सुधा जी के किस तांका को चुनूँ...किसे छोडूँ...| सब एक से बढ़ कर एक...खूबसूरत बिम्बों से परिपूर्ण...| बहुत कुछ सीखने को मिलता है सुधा जी की सुन्दर लेखनी से...|
हार्दिक बधाई और आभार