गुरुवार, 26 सितंबर 2013

पीर जिया की,

डॉ जेन्नी शबनम
1. 
आँखों की कोर  
जहाँ पे चुपके से  
ठहरा लोर
कहे नि:शब्द कथा 
मन अपनी व्यथा !
2.
छलके आँसू 
बह गया कजरा 
दर्द पसरा
सुधबुध गँवाए
मन है घबराए !
3.
सह न पाए 
मन कह न पाए
पीर जिया की,  
फिर आँसू पिघले  
छुप-छुप बरसे ! 
4.
मौसम आया 
बहा कर ले गया 
आँसू की नदी,  
छँट गयी बदरी 
जो आँखों में थी घिरी !  
5.
मन का दर्द 
तुम अब क्या जानो 
क्यों पहचानो
हुए जो परदेसी
छूटे हैं नाते देसी ! 
6. 
बैरंग लौटे 
मेरी आँखों में आँसू 
खोए जो नाते
अनजानों के वास्ते 
काहे आँसू बहते ! 
7.
आँख का लोर 
बहता शाम-भोर
राह अगोरे 
ताखे पर ज़िंदगी 
नहीं कहीं अँजोर !
-0-

अँजोर=उजाला,लोर= आँसू

7 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत सुंदर भावप्रबल तांका॥जेनी जी ।

Krishna ने कहा…

सभी ताँका बहुत भावपूर्ण ! जेन्नी जी बधाई !

Manju Gupta ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति

बधाई .

Pushpa mehra ने कहा…

sah na pae, man kah na pae ,..piir jiya kii............. bahut sundar. sabhi taanka bhavpurn hain. badhai.

pushpa mehra

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

ताँका पसंद करने के लिए आप सभी का दिल से शुक्रिया.

ज्योति-कलश ने कहा…

बहुत सुन्दर ताँका ....

सह न पाए
मन कह न पाए
पीर जिया की,
फिर आँसू पिघले
छुप-छुप बरसे ! .....बेहतरीन ...बहुत बधाई !

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

दिल तक पहुंचे ये भावपूर्ण तांका...बहुत बहुत बधाई...|

प्रियंका