सोमवार, 30 सितंबर 2013

बगिया में दूब रची



डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
1
रचना क्या ख़ूब रची !
दुनिया में नारी ,
बगिया में दूब रची ।
2
रिश्ता यूँ टूट गया 
पश्चिम ना अपना 
पूरब भी छूट गया।
3
किस पर इल्जाम रखें 
बीज बबूल दिए 
कैसे अब आम चखें।
4
छोड़ें भी नादानी 
कदर यहाँ हमने 
खुद अपनी  नाजानी |
5
उनसे जब प्यार हुआ 
साँसें गीत बनीं 
जीवन उपहार हुआ ।
6
कैसा उपहार दिया 
बोल गए कान्हा 
लो तुमको तार दिया ।
7
कान्हा मत हास करो 
तार न अब चलते
मन आस-उजास भरो !
-0-

रविवार, 29 सितंबर 2013

बिना किरण

कृष्णा वर्मा
1
धरा -सी शक्ति
नारी में समाहित
काहे को ललकारो
फट पड़ी तो
निगल न ले कहीं
लोक के ठेकेदारों ।
2
युगों से खड़ी
मायका ना सासरा
कहाँ से है अबला
शक्ति तो देखो
धरातल ना कोई
बने फिर आसरा ।
3
मर्द यूँ जानें
औरत तो बेचारी
है नियति की मारी,
वे कब जानें
संस्कारों की ख़ातिर
चुप्पी साधे है नारी ।
4
मर्द होता है
यदि ईंट घर की
औरत भी है गारा
बिना किरण
सम्भव कब होता
भानु का उजियारा ।
-0-

शनिवार, 28 सितंबर 2013

बूँदें भरमाई हैं

अनुपमा त्रिपाठी ।
1
फिर बारिश आई है 
प्रेम लिये झरती 
टिप-टिप हरषाई  है 
2
मन मेरा भीज रहा 
यादों में डूबा 
सुधियों में  रीझ  रहा 
3
साँझ सुनहरी घिरती
स्वर्णिम  पंखों से 
बूँदों को  ले तिरती ।
4
बूँदें भरमाई हैं 
टिपिर टिपिर करती 
संदेसा लाई हैं  ।
5
आशाएँ भी सरसें 
बादल पंख लिये
जब मन पर यूँ बरसें ।
6
आँख -मिचौनी सी !
हम-तुम ,तुम-हम में 
फिर भी दूरी कैसी  

-0-

डाली से पात झरे

शशि पाधा
    1
अनचीन्ही पात झड़ी
धरती के अँगना
पतझड़ क्यों आन खड़ी।
2
कैसी मनमानी है
तेज़ हवाओं ने
भृकुटी क्यों तानी है ।
 3
तरुवर चुपचाप खड़े
बदले मौसम के
तेवर से कौन लड़े।
4
बगिया हैरान हुई
सूनी डाली से
पहली पहचान हुई ।
5
यह पीड़ा कौन सहे
तरुवर ठूँठ हुए
पाखी से कौन कहे ।
6
कुछ भेद छिपाती है
धूप सहेली भी
अब रोज़ न आती है |
 7
हर डाली पीत हुई
सावन हार गया
पतझड़ की जीत हुई |
8
कोयल क्या ढूँढ़ रही
सूनी डाली पे
कोई ना गूँज रही
9
वो बात पुरानी थी
चूनर सतरंगी
चोली भी धानी थी |
10
डाली से पात झरे 
अब कब लौटेंगे
वो  दिन पुखराज जड़े |

 -0-

गुरुवार, 26 सितंबर 2013

अश्रु और मुस्कान

डॉ० हरदीप सन्धु
1
दोनों नदियाँ
वादियों में पहुँची
बनती एक धारा
अश्रु बहते
छलकी ज्यों अँखियाँ
दु:ख सब कहतीं ।
2
पालने मुन्नी
माँ लोरियाँ सुनाए
मीठी निंदिया आए
यादों में सुने
लोरियाँ माँ का मन
दिखता बचपन ।
3
श्वेत व श्याम
दो रंग दिनरात
अश्रु और मुस्कान,
साथदोनों का
यहाँ पलपल का
खेलें एक आँगन ।
4
तेरी अँखियाँ
ज्यों ही रुकीं आकर
मनदहलीज पे,
हुआ उजाला
जगमगाए दीए
मेरे मनआँगन ।

-0-

पीर जिया की,

डॉ जेन्नी शबनम
1. 
आँखों की कोर  
जहाँ पे चुपके से  
ठहरा लोर
कहे नि:शब्द कथा 
मन अपनी व्यथा !
2.
छलके आँसू 
बह गया कजरा 
दर्द पसरा
सुधबुध गँवाए
मन है घबराए !
3.
सह न पाए 
मन कह न पाए
पीर जिया की,  
फिर आँसू पिघले  
छुप-छुप बरसे ! 
4.
मौसम आया 
बहा कर ले गया 
आँसू की नदी,  
छँट गयी बदरी 
जो आँखों में थी घिरी !  
5.
मन का दर्द 
तुम अब क्या जानो 
क्यों पहचानो
हुए जो परदेसी
छूटे हैं नाते देसी ! 
6. 
बैरंग लौटे 
मेरी आँखों में आँसू 
खोए जो नाते
अनजानों के वास्ते 
काहे आँसू बहते ! 
7.
आँख का लोर 
बहता शाम-भोर
राह अगोरे 
ताखे पर ज़िंदगी 
नहीं कहीं अँजोर !
-0-

अँजोर=उजाला,लोर= आँसू

बुधवार, 25 सितंबर 2013

मधुर बानी

भावना सक्सेना

मधुर बानी
जग ने पहचानी
ये ओजस्विनी
भू के कोने -कोने में
सरसे भाव
लहरा पताका,
फैल विश्व की
हृदय-तंत्रियों में
हरे अज्ञान
भाव पिरो शब्दों में
बाँधे बंधन
सींचे जीवन धन
करे मन कंचन ।

-0-

दुआओं का असर

सुभाष लखेड़ा 
1  
अदब घटा  
बड़ों का दुनिया में 
सिर्फ तब से  
दुःख दर्द न बाँटे  
अपनों के जब से। 
2
कम हो गया 
दुआओं का असर 
दिल से नहीं 
निकलती लब से  
ये दुआएँ जब से। 


-0-

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

सुनो ज़िन्दगी!

डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
उन्होनें कहा -
पंक भरा बाहर
पग रखना नहीं,
विश्वास मेरा-
खिलेंगे कमल भी
देखना कल यहीं ।
4
मैंने ये रिश्ते
फूल जैसे सहेजे
तितली की मानिंद
छुए प्यार से
महक बाकी रही
रंग भी खिल गए।
5
क्यूँ सोचते हो
जो तुम दर्द दोगे
तो बिखर जाऊँगी
ये जान लो
धुल के आँसुओं से
मैं निखर जाऊँगी ।
6
सुनो ज़िन्दगी!
तुम एक कविता
मैं बस गाती चली
रस -घट भी
प्रेम या पीडा़ -भरा
पाया , लुटाती चली ।
7
ओ रे सावन !
प्यारा मीत सबका
कली का ,चमन का
श्यामल मेघ
संग में लाया कर
यूँ ना भुलाया कर ।
-0-