मंगलवार, 6 अगस्त 2013

मन-दर्पण जैसा

अनिता  ललित 
1
पीछे आग सुलगती
आगे राह धुआँ
जीवन-आस न जगती!
2
रोती बेबस आँखें
कहतीं करुण कथा
साँसें गरम सलाखें !
3
समझा जिसको अपना
मन-दर्पण जैसा
निकला टूटा सपना !
4
रिश्ते भी हैं फ़ानी
सूखे दरिया से
छलके कैसे पानी!
-0-

6 टिप्‍पणियां:

shashi purwar ने कहा…

anil ji aapke sabhi mahiya bahut sundar hai समझा जिसको अपना
मन-दर्पण जैसा
निकला टूटा सपना ! .sundar
aur 4 bhi mujhe bahut pasand aaya hardik badhai aapko

Krishna ने कहा…

सभी माहिया बहुत सुन्दर....अनीता जी बधाई!

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत सुन्दर माहिया...बधाई...|

प्रियंका गुप्ता

Subhash Chandra Lakhera ने कहा…

" रोती बेबस आँखें / कहतीं करुण कथा / साँसें गरम सलाखें!"
बहुत सुन्दर सभी माहिया..अनिता ललित जी, बधाई!

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

शशि जी, कृष्णा जी, कही अनकही जी... सराहना व प्रोत्साहन के लिए आप सभी का बहुत-बहुत आभार..... :-)

~सादर!!!

Manju Gupta ने कहा…

रोती बेबस आँखें
कहतीं करुण कथा
साँसें गरम सलाखें !

बहुत खूब माहिया .

बधाई .