शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

तेरी बाट निहारें

कमला निखुर्पा
1
मेले में खोई -सी 
यूँ लगता मुझको 
हँसके फिर रोई-सी ।
2
अपना- सा लागे है
आवारा बादल  
नभ में जब भागे  है ।
3
हमसे तो लाख भले
पंछी अम्बर के
जब चाहे देश चले  
4
तेरी बाट निहारें
दो बेचैन नयन
सपनों को पुकारें
5
उड़ चल ऐ मेरे मन
कितना फैला है !
ये सुधियों का आँगन
6
बैरन आज उदासी
इसके ही कारण
मेरी निंदिया प्यासी

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6 टिप्‍पणियां:

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - इंतज़ार उसका मुझे पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

Minakshi Pant ने कहा…

Shbdon ke bich accha samnjsay .

Manju Gupta ने कहा…

हमसे तो लाख भले
पंछी अम्बर के
जब चाहे देश चले ।
सभी बहुत खूब महिया .

बधाई .

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

मन की पीड़ा बयान करते खूबसूरत माहिया के लिए बहुत बधाई...|
प्रियंका

विभूति" ने कहा…

भावो का सुन्दर समायोजन......

Krishna ने कहा…

बैरन आज उदासी
इसके ही कारण
मेरी निंदिया प्यासी

बहुत सुन्दर...बधाई!