मंगलवार, 4 जून 2013

चिड़िया थी वो

 रचना श्रीवास्तव
रंगीन पंख
कोमल मन वाली
चिड़िया थी वो
उडती गगन पे
चोंच में भर
सूरज की किरणें
नित राह में
करती  थी उजाला
लिखती कभी
सिन्धु  की लहरों पे
वो अपना ही
नूतन इतिहास
बादलों पर
क़दमों के निशान
बनाती वह
चलती ही जाती ,
खलने लगी
गिद्धों को बहुत  ही
उसकी ख़ुशी ,
एक दिन  उसके
नोचे थे पंख
थम गया समय
रोया बादल
नदियाँ चुप हुई
इस दर्द से
फटने लगी धरा,
छटपटाती 
वो मासूम आ गिरी
धरती  पर ,
बहुत देर चीखें
उसकी गूँजी
हुए घायल पंख
कभी उठते
कभी गिरते रहे 
साँसे रोके  थे
सुख-दु:ख के साक्षी
सूरज -चाँद
पर थे वे बेबस
चिड़िया चली
जीने की चाह लिये
उस दूर लोक को  ।






4 टिप्‍पणियां:

sushila ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण और सुंदर चोका। बधाई रचना जी !

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

आपकी सर्वोत्तम रचना को हमने गुरुवार, ६ जून, २०१३ की हलचल - अनमोल वचन पर लिंक कर स्थान दिया है | आप भी आमंत्रित हैं | पधारें और वीरवार की हलचल का आनंद उठायें | हमारी हलचल की गरिमा बढ़ाएं | आभार

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत मार्मिक...क्या कहूँ...?
सुन्दर लेखनी के लिए बधाई...|

प्रियंका

ज्योति-कलश ने कहा…

बहुत सामयिक और मन को छू लेने वाला चोका है रचना जी ...बधाई स्वीकारें !

ज्योत्स्ना शर्मा