शुक्रवार, 14 जून 2013

मिलने को तरसे हम

डॉ सरस्वती माथुर
1
हैं यादें रंगीली
उड़ के आई हैं
हैं बिन बरसे गीली l
2
मिलने को तरसे हम
यादें आई तो
निकले फिर घर से हम l
3
है मन की लाचारी          
मिलना तुझसे  भी 
लगता  है अब  भारी l
4
मन के घट हैं रीते   
तेरे बिन सजना
दिन अब कैसे बीतें ? 
5
मन का पाखी चहका
तेरी यादों से
दिल रहता है महका l

-0-

1 टिप्पणी:

ज्योति-कलश ने कहा…

सुन्दर माहिया ....बधाई सरस्वती जी

ज्योत्स्ना शर्मा