मंगलवार, 28 मई 2013

भाव-सखा

 शशि पुरवार
1
पीर मन की
तपता रेगिस्तान
बिखरे ख्वाब
पतझड़ समान
बसंत भी रुलाए ।
2
तुम हो मेरे
भाव-सखा सजन
तुम्हारे बिन
व्यथित मेरा मन
बतलाऊँ मैं कैसे ? .
3
चंचल हवा
मदमाती -सी फिरे
सुन री सखी  !
महका है बसंत
पिय का आगमन !
4
शीतल हवा
 ये अलकों से खेले
मनवा डोले
बजने लगे चंग
सृजित हुए छंद ।
-0-

11 टिप्‍पणियां:

ज्योति-कलश ने कहा…

बहुत सुन्दर सृजन शशि जी ...बहुत बधाई !

शुभ कामनाओं के साथ
ज्योत्स्ना शर्मा

मंजुल भटनागर ने कहा…

बहुत खूब लिखा है बधाई .

Manju Mishra ने कहा…

bahut sundar tanka hain Shashi ji ...

Manju Mishra ने कहा…

bahut sundar tanka hain Shashi ji ...


www.manukavya.wordpress.com

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

shashi ji pratyek tanka sundar :) badhaayi :)

shashi purwar ने कहा…

shukriya himanshu ji , sandhu ji hamen shamil karne ke liye

shukriya mitro utsaahvardhan hetu

Krishna ने कहा…

शशि जी सभी ताँका बहुत सुन्दर...बधाई।

sushila ने कहा…

चंचलता और श्रंगार का भाव लिए सुंदर ताँका। बधाई शशि जी !

sushila ने कहा…

चंचल, श्रंगार का सौन्दर्य लिए सुंदर ताँका। बधाई शशि जी !

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

सभी तांका बहुत सुन्दर...पर ये वाला खास तौर से मन को छू गया...|
बधाई...|
प्रियंका

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

पीर मन की
तपता रेगिस्तान
बिखरे ख्वाब
पतझड़ समान
बसंत भी रुलाए ।
ये तांका बहुत भाया...|
बधाई...|
प्रियंका