बुधवार, 3 अप्रैल 2013

वो याद तुम्हारी थी ( माहिया)


डॉ• ज्योत्स्ना शर्मा
1
कल भीग गए नैना
चाहा था उड़ना
खामोश हुई मैना ।
2
टुकड़ों का मोल नहीं
माँ-बाबा खातिर
दो मीठे बोल नहीं ।
3
फूलों ने यारी की
थी बदनाम हवा
झरना लाचारी थी ।
4
है रात नशीली- सी
छेड़ गई मन को
इक याद रसीली -सी ।
5
बादल में चाँद छुपा
ये निर्मोही मन
मेरे रोके न रुका ।
6
कलियों की क्यारी थी
चटकी थी मन में
वो याद तुम्हारी थी ।
7
धड़कन ने छंद बुने
छलक गई गागर
जग रस-मकरंद चुने ।
-0-

6 टिप्‍पणियां:

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Gahan abhivykti hai aapke mahiya men ..meri bahut2 badhai...

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत सुंदर, दिल को छूने वाले माहिया...!
डॉ ज्योत्सना जी तथा इससे जुड़े हर रचनाकार को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ!
~सादर!!!

shashi purwar ने कहा…

bahut sundar jyotsana ji sabhi mahiya sundar hai

Krishna ने कहा…

सभी माहिया बहुत सुन्दर...बधाई।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सभी माहिया दिल के करीब. ए बहुत ख़ास लगा...

कलियों की क्यारी थी
चटकी थी मन में
वो याद तुम्हारी थी ।

बधाई.

ज्योति-कलश ने कहा…

डॉ. भावना जी ,शशि जी ,अनिता जी ,कृष्णा जी एवं डॉ. जेन्नी शबनम जी आपकी स्नेहमयी उपस्थिति मेरे मन को नई ऊर्जा से भर गई |
सादर साभार
ज्योत्स्ना शर्मा