शुक्रवार, 1 मार्च 2013

बचपन की गलियाँ


माहिया - डॉ• सुधा गुप्ता
1
वे बचपन की गलियाँ
हम भूल न पाए
जो आज हुईं छलिया ।
2
वो बचपन के मेले
रूठ नहीं जाना
नित खेल नए खेले ।
3
जब चाँद नहीं आया
मन बेचैन हुआ
घिरता ग़म का साया ।
4
जब से बिछुड़े तुमसे
रातें उजड़ीं-सी
सब दिन हैं बेरंग-से
5
मन को अब चैन नहीं
आँखें रीती हैं
होठों पर बैन नही।
6
जो अब तुम आओगे
ख़ाक मिलेगी बस
कुछ और न पाओगे ।
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