गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

जीवन का आकाश


रचना श्रीवास्तव
1
भर ही  जाता
जीवन का आकाश
कभी रंगों से,
कभी बेनूर होता
ये खाली केनवास 
2
बहुत कुछ
कोरी किताब पर  
लिखना चाहा
हमने जब-जब
खत्म हो गई 
स्याही ।
3
इस जीवन
से कुछ नहीं  चाह
पर  न जाने
क्यों , बूँद-बूँद मेरी
उम्मीद पीता  गया  ।
4
उनके लिए 
यह जीवन होगा 

फूलों की सेज 
हमको तो सोने को
ज़मीन  भी न मिली  ।
5
ज़िन्दगी पर
लिखी थी नज़्म मैंने
महकती थी
पर अब उसके
शब्द ढहने लगे हैं ।
 -0-

बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

मौसम मनमीत हुआ


कृष्णा वर्मा
1
मौसम ने रुख बदला
मन उड़ लिपट गया
उन यादों से पगला।
2
डाली लद लचकी है
भौरे दीवाने
कलियाँ जो चटकी हैं
3
ऋतु करवट बदल रही
बाग-बगीचों की
तकदीरें पलट रही।
4
पेड़ों पर हरियाली
झूम उठी शाखें
चिड़ियाँ हैं मतवाली।
5
पेड़ों पर नूर खिले
लाज -भरी लतिका
हँस-हँस के कण्ठ मिले।
6
मौसम जो सौदाई
मीठी चुभन हुई
अँखियाँ भर-भर आईं ।
7
दीवानी पवन बही
मन ने मन से जा
गुप-चुप  हर बात कही।
8
मौसम मनमीत  हुआ
लौ की तारों ने
दिल को जब आन छुआ।
-0-

नापाक हरकतें


नापाक हरकतें
-डॉ
भावना कुँअर
कोई तो है ये
लगाकर जो बैठा
गहरी सेंध!
मेरी खुशियों पर।
झरने लगीं
यूँ भरभराकर
मेरे घर की
मज़बूत दीवारें ।
कोई तो है जो-
फेंककर है गया
लाल चोंटली
खुशबू बिखेरते
गुलाबों बीच,
जो मुरझाने लगे
यूँ कसमसाकर ।
कोई तो है जो-
चुपके से आकर
रोप के गया
मिर्चियों की  ये पौध
भरने लगी
घनी कड़ुवाहट
शहद भरे
मीठे-मीठे बोलों में ।
कौन हो तुम?
जरा सामने आओ!
बिगाड़ा है क्या?
खुलकर बताओ ।
बजी है ताली
एक हाथ से कभी ?
तो मुझे ही क्यूँ
स्वार्थी,लोभी,चालाक
ये उपाधियाँ?
दे डाली  हैं पल में
खुद ही सोचो !
फैलाया है किसने
मोहब्बत का जाल?
कलियाँ कभी
उड़कर क्या जातीं
भौंरों के पास?
या कि नदियाँ जातीं
प्यासों के पास?
या कि फल आ जाते
भूखों के पास?
तो बन्द करो
अपनी ये घिनौनी
नापाक हरकतें।
जानते हो ना
और मानते भी हो !
खाली रहता
उनका भी दामन
लूट ले जाएँ
जो औरों की खुशियाँ
मुस्काती ज़िंदगियाँ।
-0-

रविवार, 24 फ़रवरी 2013

साँसों की डोर


तुहिना रंजन
1.
साँसों की डोर 
उलझी   कुछ  ऐसी  
छटपटाए  मन  
करो जतन 
अँधेरे  से उबारो 
शांतिमय हो अंत  
 2.
साधक तप  
इच्छा मृत्यु  वरण   
ध्यान  भजन  योग,
सात्विक अन्न 
संतुलन नियम  
श्वास श्वास जीवन  ।
 3
अनंत यात्रा  
स्थूल से सूक्ष्म तक  
वैतरिणी के पार 
देहावसान  
ब्रह्म में हो विलीन 
व्यक्ति बने समष्टि  
 4.
मौत ने छीने  
मधुर वो सपने  
जो देखे मैंने तूने  
कली न हँसी  
फूल भी मुरझा
विधि का लेखा हाय !!  
 5.
अंत नहीं ये  
सर्पीली सुरंग -सा  
जो चले निरंतर 
प्रकाश पुंज  
गहन निशा तले  
ले रहा पुनर्जन्म ।
-0-

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

शरीर से मुक्ति


1-रचना श्रीवास्तव
1
दुखी है आत्मा
क्यों छोड़के शरीर ?
परमात्मा से होगा
तेरा मिलन
जिनसे जन्मी है तू
उन्ही में माना है
2
मृत शरीर
काहे रोता है  प्राणी
आत्मा न मरती है
न होती नष्ट
ऐसा दे गए ज्ञान  
पार्थ को वे सारथी !
3
ये  मौत क्या है ?
शरीर से मुक्ति है
मोक्ष है या तृप्ति है ,
या फिर न
बंधन में बँधने
की  ये राह है  नई ।
4
मौत के पंजे
कब कहाँ किसको
ने आगोश में
लेंगे समेट
'उसके ' अलावा तो
कोई नहीं जानता  ।
5

 मौत पड़ाव
भागती जिंदगी का
पूर्ण विराम है ये
आती साँसों के
बन्द उपन्यास का
है ये अंतिम पन्ना
6
छूटता हाथ
दर्द के दरिया में
जब सदा के लिए
डूबता मन
खाली हो जाती घर
और ये दामन भी 

2-डॉ सरस्वती माथुर
1
उडता फिरा
मृत्यु के डैनो पर
खामोश गुमसुम
जीवन पाखी
सो गया ओढ़ कर
सफ़ेद सा कफ़न l
2
 मृत्यु चिड़िया
जीवन गगन में
 खेले आँख मिचौनी
समय यम
जीवन लहर में
 भँवर ला - ले जाए l
3
घना तिमिर
जीवन चौबारे पे
उतरा उदास सा
मृत्यु रथ पे
रूह लेके जाने को
दलाल बन आया l
4
मृत्यु दलाल
वसूलता है कर्ज
जीवन सपनो से
मौन हवाएँ
सन्नाटे को बुनती
कफ़न चुनती हैं l
-0-
3-कृष्णा वर्मा
1
भयभीत क्यों
रहा आजीवन मैं
कमसिन मृत्यु से
दबे पाँव आ
अंक लगाके किया
मुक्त हर ग़म से।
2
क्षणभंगुर
सा जीवन फिर भी
मोह माया में फँसे
मूर्ख मन की
देख बेचैनी, मौत
भी, लुक-छिप हँसे।
3
दीप ध्यान का
करलो प्रज्वलित
बुझा ना पाए मौत
छूटे पल में
धन पद यश तो
जो जाएँ परलोक।
-0-


उधारी साँसें


कृष्णा वर्मा
1
घुमेर सी मैं
सोचों के भँवर में
नाची, जानी ना
नट सा रस्सी पर
चलना ही जीवन।
2
जीवन लगे
कोई गहरा मर्म
जीवन भर
चाह के सुलझी
गुत्थी है जो उलझी।
3
जीवन मात्र
मृत्यु की अमानत
उधारी साँसें
लिखा, मिट पाता
फेंको जितने पासे।
4
चलें तो कष्ट
देता यह जीवन
रुकें हों नष्ट
सहने को यातना
होना होगा अभ्यस्त।
5
तम से भरी
जीवन की कोठरी
हो दीप्तिमान
कभी ढूँढ ना पाई
ऐसी दिया सिलाई।
-0-

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

जीवन- खेल


1-तुहिना रंजन
1.
श्रम की बूँदें  
निसंदेह  कभी तो  
बनेंगी मोती  
मिल जागी सीप  
गहरे पानी पैठ ।
 2.
जीवन- खेल  
समय का पहिया  
सुखद क्षण  
रंग -भरे सपने 
कभी दु:खी हो मन ।
 3.
गुनगुनाते  
सपनो को सजाते 
खिलखिलाते  
रूठते  ' मनाते  
! जी लें  हर पल !
 4.
सूखी माटी  भी  
भीग ओस -अश्रु  से 
बीज सहेजे  
अथक प्रयास से 
करती अंकुरण ।
5.
कर्मठ जोगी-  
परिश्रमी दो हाथ
प्रार्थनारत  
धन्य -धन्य हो रहे  
पा कृपा पुरस्कार 
-0-
2-अनिता ललित
1
अँधेरा छाए,
जो जीवन-पथ पर
घबराना ना !
आस-जोत जलाना
दिल को दीप बना !
2
जीवन -धार
रिश्तों के मंथन में
होती आहत
छलकते नयन
करके विष-पान !
3
जीवन मिला
चुनौतियाँ भी संग
न डरो मनु !
तुम हो सृजक की
एक उत्तम कृति !
4
जीवन -रंग
खिलें सुख-दुख में
हँसो, स्वीकारो !
हर रंग में छुपा
ईश्वर का नूर है !
5
जीवन हो यूँ
ज्यों जले दीप-ज्योति,
करे उजाला
जब तक लें साँसें,
नियति बुझ जाना!
-0-
 3-सुभाष लखेड़ा
  1
दया भाव हो,
सभी के लिए स्नेह
व  हो सद्भाव
किसी को दर्द न दें
ऐसा जीवन जिएँ।
2
जीवन क्या है ?
क्या सिर्फ साँस लेना
कदापि नहीं
जीवन उमंग है
हँसती तरंग है।
-0-