गुरुवार, 31 जनवरी 2013

ओस -भरी पाँखें ।


डॉ सुधा गुप्ता
1
वे दो हिरना  आँखें
मन बीच बसी है
ज्यों ओस -भरी पाँखें ।
2
जल में पुतली तिरती
नील कमल पर ज्यों
बनम डबडब करती ।
3
अब आँसू सूख  चले
रेत -भरी आँखों
सपना कोई न पले ।
4
जाना था तो जाते
लौट न पाएँगे
इतना तो कह जाते ।
5
सब दिन यूँ  ही बीते
बाती से बिछुड़े
हैं दीप पड़े रीते ।
6
अब नींद नहीं आती
रातें रस भीनी
कोरी आँखों जाती ।
7
जब चाहो तब मिलना
पर यह वादा हो
फिर सितम नहीं करना ।
8
जब पाँव चुभा काँटा
छोड़ गया पथ में
दर्द न तूने बाँटा ।
-0-

मंगलवार, 29 जनवरी 2013

हँसकर हर दौर जिया


हरकीरत 'हीर'
1
ये आया कौन ? खुदा  !
 साँसें  महक उठीं,
ग़म से कर दे न जुदा 
2
हमने हर घूँट पिया
विषमय जीवन का
हँसकर हर दौर जिया .
3
सच तू , तू ही सपना
कैसी प्रीत  मिली
गैरों में तू अपना ।
4
उधड़ी मैं ज्यों कतरन
तनिक पता  न चला
बिखरी मैं बन उतरन ।।।
5
साँसों से बरसी हैं
आहें यादों की
प्यार बनी ,तरसी हैं ।
-0-

सोमवार, 28 जनवरी 2013

धरा पीत वसना



डॉ ज्योत्स्ना  शर्मा
1
सुरभित- सी
पवन ,ले अनंग
धरा पीत वसना
हे ऋतुराज !
कुहू ,पिक पुकारे -
स्वागत है तुम्हारा !
2
चंचल हवा
धीरे से पत्तियों से
जाने क्या कह जाएँ ,
झूम ही उठें
ये शांत तरुवर
लजा गईं लताएँ !
3
ओह नियंता !
नियमों में बँधे हैं
सतत तुम्हारे ही 
गतिमान हैं
धरा ,चाँद व तारे
ये  प्रकाशमान हैं !
4
समय-चक्र
अनवरत चला
प्राप्य सभी को मिला,
सुख औ' दुःख
क्रम टाला न जाए
सहना ,जो भी आए ।

शनिवार, 26 जनवरी 2013

पाया जो तुम्हें


कृष्णा वर्मा
1
पाया जो तुम्हें
उमंग बनी मेरी
खुशियों की बहार
गोद में लिया
ज्यों बेटे का शैशव
पुन: मिली सौग़ात।
2
देखा जो तुझे
मन गुदगुदाया
पाया बड़ा आनन्द
कसके तूने
अँगुली यूँ पकड़ी
ज्यों जन्मों का सम्बन्ध।
3
हर लेती है
तेरी ये मुसकान
मेरी सब पीड़ाएँ,
कैसा बंधन
दीर्घायु की  पिपासा
सहसा बढ़ी जाए
4
भोली -सी तेरी
मीठी प्यारी बातों में
कैसा  है भरा जादू !
अनेकों ग़म
तेरी हँसी दे मेट
तू अनुपम भेंट।
5
तू नटखट
शैतान बड़ा पर,
मेरी आँख का तारा,
निज बेटे से
बढ़कर लगे तू
रिश्ता है कैसा न्यारा।
6
ना हरि सेवा
नित नेम प्रभु का
कैसे मोह में पड़ी !
चित्त सुझाए
इसकी सेवा में ही
हरि भी मिल जाए ।
-0-


गुरुवार, 24 जनवरी 2013

बचपन की बातें ( माहिया )

शशि पाधा
1
सुधियों की गलियाँ हैं 
बचपन की बातें
मिश्री की डलियाँ हैं  ।
2
ममता की डोरी थी
दादी की गोदी
मीठी सी लोरी थी  ।
3
तितली से उड़ते थे
मन को पंख लगे
जित चाहे मुड़ते थे ।
4
खुशियाँ भर झोली में
ब्याह के शगुन हुए
गुडिया की डोली में ।
5
छम छम बरसात हुई
तन-मन भीग गया
शीतल सौगात हुई ।
6
तारों की छैयाँ में
कितने सपने थे
उस भूल भुलैयाँ में  ।
7
क्या खेल तमाशे थे
भर भर हाथों में
बस खील बताशे थे  ।
8
कब लौट के आएँगे
खेल खिलौने के
दिन फिर जी पाएँगे  !
-0-


बुधवार, 23 जनवरी 2013

रंगों की छटा छाई


सुदर्शन रत्नाकर

आहट हुई
आता ही होगा कोई
शायद वही
कलियाँ मुस्कराईं
घूँघट  खोले
रंगों की छटा छाई
धरा नहाई
आसमान निखरा
सरसों खिली
सुगंधित हवाएँ
करतीं मस्त
छूट गया आलस्य
विदा हो गईं
ठिठुरन की रातें
लाईं सौग़ातें
भँवरों की गुंजार
कुहू की कू कू
मन को है सुहाई
वसंत तु  आई
-0-