शनिवार, 8 दिसंबर 2012

तोड़ते मेरी चुप्पी


डॉ  भावना कुँअर
1
तेरी चाहत
कुछ कम तो न थी
क्यूँ छोड़ा आशियाना
सूझी क्या मुझे
जो ढूँढकर लाई
निष्ठुर- सा घराना।  
2
तुम  तो न थे
पत्थर से -कठोर
तोड़ते मेरी चुप्पी
तुम्हारा मन
यूँ देता था आवाजें
हो जाते थे विभोर।
3
अरमानों पे
नुकीली औ दुधारी
चलाते गए आरी
जहर- बुझी
तुम्हारी ये बतियाँ
सुनकर मैं हारी।
4
बेबस हम
भटकाती ही रही
वो यादों की सुरंग
तड़फे हम
गुज़रा हुआ वक़्त
पाने को हरदम।
5
तोड़ता कौन
तिनका-तिनका जो
जोड़े गए घरौंदे
जानते सभी
कैसी ये मजबूरी
जो सभी बैठे मौन।
6
कड़ा पहरा
यादों की बस्तियों में
छोड़े चिंगारी कौन?
अरमानों को
जला राख करती
देखती खड़ी मौन।
7
काटे न कटे
पिया बिन ये रातें
मुश्किल हुआ जीना
पुकारे पीहू
करें किससे हम
दर्द लिपटी बातें।
8
तेज़ तूफ़ान
है ढूँढती आसरा
वो नन्हीं-सी गौरैया
बचाए कैसे
इस मुश्किल घड़ी
अपने नन्हें प्राण।
9
पुराने दिन
रंगीन तितली -से
मँडराते फिरते
मन का कोना
खिल-खिल उठता
खुशबू से भरता।
10
करने चली
मंज़िल की तलाश
भटक गई रस्ता
अज़नबी ने
पकड़ा जब हाथ
तो खो गई मंज़िल।
-0-

1 टिप्पणी:

ज्योति-कलश ने कहा…

मन को छू लेने वाले सभी सेदोका एक से बढ़कर एक हैं |भावना जी की कलम मानव मन के कोमल भावों को बहुत सुंदरता से व्यक्त करती है ....बहुत बधाई ...
सादर ...ज्योत्स्ना शर्मा