गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

हर पथिक अकेला है



माहिया  (कृष्णा वर्मा)
1
जग चेतन मेला है
भीड़ भरी राहें
हर पथिक अकेला है
2
दो पात चिनारों के
नारी जनम लिया
चलना अंगारों पे  
3
पेड़ों पर पात नहीं
मौसम रुख बदले
फूलों की बात नहीं
4
जीवन में फूल खिलें
तन-मन महकेगा
जब अपने आन मिलें
5
फूलों संग काँटे हैं
राहें पथरीली
दुख-सुख मिल बाँटे हैं
6
दुख की काली रातें
लगतीं पूनम -सी
जो साजन आ जाते
7
मन चंचल होता है
माटी बिन कैसे
दुख-सुख बो लेता है
8
पग-पग पे लोग छलें
रश्क भरी बाती
नफरत का तेल बले
9
चालाक ज़माना है
भरसक यतन करे
पर समय सयाना है
-0-

3 टिप्‍पणियां:

ज्योत्स्ना शर्मा ने कहा…

बहुत गहरे अर्थ लिए सुन्दर माहिया ...

मन चंचल होता है
माटी बिन कैसे
दुख-सुख बो लेता है ।......चमत्कृत करता है ...बहुत बधाई !!

Rachana ने कहा…

मन चंचल होता है
माटी बिन कैसे
दुख-सुख बो लेता है ।
kitni sunder baat kahi kamal ki upma
badhai
rachana

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

जग चेतन मेला है
भीड़ भरी राहें
हर पथिक अकेला है ।
क्या खूब...बधाई...|