सोमवार, 5 नवंबर 2012

उम्र जो बढ़ी


रचना श्रीवास्तव


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उम्र जो बढ़ी
बढ़ा जोश उनका
कुछ पद था
कुछ पैसे का बल

माता पिता की
थी अपनी दुनिया
लड़खड़ाती
हाथों  में ले के  प्याले

गाड़ी पैसा दे
छोड़ दिया जीने को
मनमानी को
उम्र  कच्ची उनकी

बहके पग
थरथराई साँसें
खोया होश भी 
नव जीव आने का

संकेत मिला
होश में आये जब
सब था लुटा
लोकलाज का डर

भविष्य -  चिन्ता
बोला, पैसा -रुतबा l
आज फिर से
कूड़े के ढेर पर
गिद्ध मँडराते हैं  ।
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6 टिप्‍पणियां:

ज्योत्स्ना शर्मा ने कहा…

वर्त्तमान परिस्थितियों का बहुत सटीक चित्र उकेरा है आपने रचना जी ...समस्याओं का मूल क्या है ...जानना बेहद आवश्यक है .....!!

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत सशक्तता से अपनी बात कह दी आपने...बहुत खूब...बधाई...।
प्रियंका

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

vartmaan stithi ko bahut khub darshaya hai aapne..bahut2 badhai...

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

काश ! संभल जाते बिखरने से पहले...~बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
~सादर !

Krishna Verma ने कहा…

सामयिक स्थिति का सुन्दर वास्तविक चित्रण...बधाई।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाह...
बहुत सुन्दर!