सोमवार, 12 नवंबर 2012

धनतेरस- कथा


-सुशीला शिवराण
वणिक भैया
बड़े चतुर दैया
कहते - सुनो
आई धनतेरस
लक्ष्‍मी जी आईं

खरीदो जी भर के
नए बर्तन
कपड़े-आभूषण
शुभ बहुत
होते चाँदी के सिक्‍के
रिवाज़ सच्‍चे
हम भी हैं संस्कारी
निभाई रीत
मानी उनकी बात
दिल के साथ
शाम हुई तो देखा
गई थीं रीत
भरी जेबें हमारी
उतर गई
शॉपिंग की ख़ुमारी
सोच रहे हैं
धन-वर्षा होनी थी
हो गया उल्टा
धन तो रुखसत
खाली मुट्ठी फ़कत !

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9 टिप्‍पणियां:

Dr.Anita Kapoor ने कहा…

वाह नया अंदाज़ चोका में कथा.....बधाई

शशि पाधा ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति सुशीला जी |

रविकर ने कहा…

दीप पर्व की

हार्दिक शुभकामनायें
देह देहरी देहरे, दो, दो दिया जलाय-रविकर

लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।

sushila ने कहा…

हार्दिक आभार शशि जी।
आपको ज्योति-पर्व पर सपरिवार शुभकामनाएँ !

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत मज़ा आया यह चोका पढ़ कर...। बधाई और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ...।
प्रियंका

sushila ने कहा…

आपको भी दीप-पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ रविकर जी।
साभार

sushila ने कहा…

आपको मज़ा आया यानी चोका लेखन सार्थक हुआ।
आपको भी प्रकाशपर्व की शुभकामनाएँ प्रियंका जी।

sushila ने कहा…

आभार अनिता जी।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत बढ़िया चोका, बधाई सुशीला जी.