गुरुवार, 31 मई 2012

वो दो आँखें


तुहिना रंजन
1
कुछ असीम 
कुछ सीमा तक था 
प्रेम बरसा
बादल थमा रहा
भीगा -सा तरसा- सा   
2
नदी उमड़ी
बाँध तोड़ चुकी थी
तट तड़पा
बाहों में भरने को 
मिलन मधुर था


3
अनसुलझी
अजब पहेली -सी 
उसकी आँखें
कुछ कहना चाहें 
झिझकें, झुक जाएँ ।
 4
दिल का कोना 
कैसे वो दिखलाएँ
हाँ छुपा है 
एक अँधेरा सच
अपने ही सायों का
 5
 देखा तुमने?
सिसकियाँ दबातीं
आह छुपातीं
फिर भी भर आतीं 
उसकी वो दो आँखें
-0-

सागर तुम

डॉ ज्योत्स्ना शर्मा


1
सागर तुम
उसमें प्रीत थोडी़
मेरी मिलाओ
चलो इस धरा को
मधुमय बनाओ

2
काँकर हुई
नींव में आज डालो
इन्सानियत
ऊपर भी उठा लो
तुम जगमगा लो
-0-

शनिवार, 26 मई 2012

धुनी कपास


कृष्णा वर्मा  (रिचमंडहिल), कनाडा
1
हिम कण से
शृंगार रजत हो
वसुंधरा का
आँचल हीरे- जड़े
सुनहरी किरणें।


2
हिम की बिछी
चादर धरा पर
बिछी चाँदनी
चन्दा खिले आकाश
क्यों नहीं मेरे साथ।

3
आसमान से
गिरते हिम-कण
धुनी कपास
ऒढ़ रजाई सोई
धरा वर्ष के बाद

4
सूर्य निगोड़ा
तपिश दे इतनी
झुलसे धरा
बदरा ताने पट
श्यामल रंग
5
बदरा छाए
दौड़ दामिनी कौंधी
बजे नगाड़े
धरा पड़ी फुहार
सोंधी बहे बयार।

6
कौन रंगता
मोहक तितलियाँ
उकेरे चित्र
सज्जित मनोहारी
अनोखी कलाकारी।



7
जल बदरा
अनूठा सा संगम
मिलें बरसें
स्नेहिल छ्म-छ्म
छटा हो अनुपम।
-0-

गुरुवार, 24 मई 2012

हँस गई चाँदनी


सुशीला शिवराण
1
रजनी बाला
उतरी अम्बर से
नहा चाँदनी
ओढ़ तारा- चूनर
मिलने प्रीतम से
2
पाओ तो मन
नभ जैसा विस्तार
प्यारे सपने
देखे जो नयनों ने
कर लूँ मैं साकार



3
कारे बादर
स्याह हुआ अम्ब
कौंधी दामिनी
चीर कालिमा देखो
हँस गई चाँदनी ।

4
नीला आसमाँ
बुलाए जब  मोहे
मन बावरा
बन जाए है पाखी
नापे नभ
- विस्तार
-0-
-


माहिया


डॉ सरस्वती माथुर
1
नभ पे तो तारे हैं
मन के भीतर भी
यादों के  झारे हैं
2
पूनम की हैं रातें
नभ के आँचल में
तारों की  सौगातें

शुक्रवार, 18 मई 2012

नेह के धागे


नेह के धागे
डॉoभावना कुँअर
1
हमेशा दिया
अपनों ने ही धोखा
मैं भी जी गई
उफ़ बिना किए ही
ये जीवन अनोखा ।
2.
भागती रही
परछाई के पीछे
जागती रही
उम्मीद के सहारे
अपनी आँखे मींचे ।
3.
चिड़िया बोली
झूम उठी वादियाँ
वातावरण
भरा मिठास से यूँ
ज्यूँ मिसरी हो घोली ।
4.
अभागा मन
है सहारा तलाशे
कितनी दूर
इस जहाँ से भागे
टूटे,नेह के धागे ।
5.
अलसाया -सा
मलता था सूरज
उनींदी आँखें
खोल न पाए पंछी
फिर अपनी पाँखें ।
6.
जीवन भर
आतंक के साये में
जीते हुए भी
खोजती थी हमेशा
उजाले की किरण ।
7.
छनती रही
रात भर चाँदनी
झूम-झूम के
चाँद और तारे भी
गाते दिखे रागिनी ।
8
खत्म न हुआ
यातना का सफ़र
टूटी थी नाव
बरसने लगा था
ओलों का भी कहर ।
9
पीर की गली
मिला, ओर न छोर
कहाँ मैं जाऊँ
रिसता मन लिये
क्या होगी कभी भोर !
10.
मछली जैसे
तड़पी आजीवन
नहीं हिचके
बींधते हुए तुम
व्यंग्य बाणों से मन ।
11
नहाती रही
अँधेरे में वो रात,
समझी नहीं
कि क्यूँ रूठ बैठा था
वो बेदर्द प्रभात ।
-0-

ठहरी शबनम


रचना श्रीवास्त
1
खुली पलक
ठहरी  शबनम
मूँ
दी छलकीं
क्या तुम समझे  हो
इनकी मौन -भाषा
 ।
2
क्यों था जरूरी ?
यों शब्दों का तड़का
स्नेह
-नदी में
निर्बाध  बहती थी
थाम लेते बाहों में
 ।
3
उच्च  शिक्षा  थी
लोगों में  सम्मान था
स्वयं पे  मान l
नैनो  की  भाषा मौन
अनपढ़  जाने  न

4
जीवन -वृक्ष
नोचे तुमने पत्ते
बूचा खड़ा था
लिखा हर पत्ते पे
बस तेरा था नाम
 ।
5
स्याह जीवन
मुट्ठी में था सूरज
उडेला मैने
हो गया जो  उजाला
तो तुम भूले मुझे
 ।
6
तू  अनपढ़’-
कहके ठुकराया
पढ़ा था प्रेम 
मेरा प्रेम प
ढ़ना ही
 काफी न था शायद
 ।
7
‘’नहीं छोडूँगा
कभी भी साथ तेरा
साया हूँ तेरा
’’ 
बुरे दिन आये तो
वह  भी  छोड़ गया
 ।
8
भाग्य- चाशनी
बन न सकी पाग
पकाई बहुत
उसकी ही थी हाँड़ी
थी आ
च भी उसीकी
9
अपना सोचा
हो पाता   अगर तो
मै कवि होता
उसने दी कलम 
लेकिन भाव नहीं
 ।
10
भाव -नदी में
डुबोके ये कलम
लिखी कविता
उनको दिखे शब्द
भाव कहीं न मिला

11

सदा तुम थे
न मै थी,  न हम थे
कैसा ये साथ ?
गाड़ी के दो  पहिये
अलग न चलते
 ।
12
जीवन
-रथ
खेओं  जिस  भी दिशा
 सारथी तुम
भटके
यदि कभी
टूट जायेगा  घर
-0-

गुरुवार, 10 मई 2012

चिड़ियाँ मन्त्र पढ़ें-


1.
ये भोर सुहानी है
चिड़ियाँ मन्त्र पढ़ें
सूरज सैलानी है
2.
आँसू जब बहते हैं
कितना दर्द भरा
सब कुछ वे कहते हैं 
3.
मन-आँगन सूना है
वो परदेस गए
मेरा दुःख दूना है
4.
मिलने का जतन नहीं
बैठे चलने को
नयनों में सपन नहीं
5.
यह दर्द नहीं बँटता
सुख जब याद करें
दिल से न कभी हटता
6.
नदिया यह कहती है
दिल के कोने में
पीड़ा ही रहती है
7.
यह बहुत मलाल रहा 
बहरों से अपना
क्यों था सब हाल कहा 
8.
दिल में तूफ़ान भरे
आँखों में दरिया 
हम इनमें डूब मरे
9.
दीपक -सा जलना था
बाती प्रेम -पगी
कब हमको मिलना था
10.
तूफ़ान -घिरी कलियाँ
दावानल लहका
झुलसी सारी गलियाँ 


----रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' 

रविवार, 6 मई 2012

दो बूँद दया बरसे


डॉoज्योत्स्ना शर्मा
1
रुत ये वासंती है
चरणों में हमको 
ले लो ये विनती है ।

2
दो बूँद दया बरसे
हम भी हैं तेरे 
फिर कौन भला तरसे ।

3
दिल मेरा तोड़ो ना
छलिया ये दुनिया
तनहा मुझे छोडो़ ना ।





4
देरी से आना हो
आकर जाने का
कोई  न बहाना हो  ।

5
सुख- दुख में साथ रहे
सबके शीश सदा
माँ तेरा हाथ रहे ।
-0-

( सभी चित्र गूगल से साभार)