रविवार, 29 अप्रैल 2012

आजादी नहीं


1-मंजु मिश्रा
1
कैसी  दुनिया  
जहाँ किसी को कोई 
आजादी नहीं
न बोलने की, न ही 
ख़ामोश रहने की
2
जब  बोलें तो 
क़हर टूटता है
चुप रहें
तो दिल टूटता है 
सजा हर हाल में ।
3
हाथ तो उठे 
कई बार, दुआ को
लेकिन हाथ 
लगा कुछ भी नहीं
सिवा  ढेरों दुःख के
4
मोमबत्ती -से 
जलते रहे हम 
जीवन  भर 
लेकिन अँधेरे थे
कभी छँटे ही नहीं
-0-

10 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

हर तांका अपनी बात कहने में सक्षम ....बहुत खूब

मोमबत्ती -से
जलते रहे हम
जीवन भर
लेकिन अँधेरे थे
कभी छँटे ही नहीं ।

यह विशेष पसंद आया

बेनामी ने कहा…

कैसी दुनिया
जहाँ किसी को कोई
आजादी नहीं
न बोलने की, न ही
ख़ामोश रहने की ।
बहुत सुन्दर
कृष्णा वर्मा

ज्योत्स्ना शर्मा ने कहा…

सभी ताँका बहुत प्रभावी .....सशक्त सुन्दर अभिव्यक्ति ...!

सारिका मुकेश ने कहा…

मोमबत्ती -से
जलते रहे हम
जीवन भर
लेकिन अँधेरे थे
कभी छँटे ही नहीं ।



बहुत सुंदर कविता! हार्दिक बधाई और धन्यवाद!
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

जब बोलें तो
क़हर टूटता है
औ' चुप रहें
तो दिल टूटता है
सजा हर हाल में .............khoobsoorat

amita kaundal ने कहा…

मोमबत्ती -से
जलते रहे हम
जीवन भर
लेकिन अँधेरे थे
कभी छँटे ही नहीं
बहुत खूब लिखा है
सभी तांका बहुत सुंदर हैं बधाई
अमिता कौंडल

Rama ने कहा…

मंजू जी के सभी तांका बहुत उम्दा हैं ..बधाई...
डा. रमा द्विवेदी

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

क्या खूब...बड़े सुन्दर और प्रभावी तांके हैं...बधाई...।

sushila ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण और मोहक तांका हैं। दूसरा और चौथा विशेष रूप से बहुत पसंद आए। बधाई मंजु मिश्रा जी !

सीमा स्‍मृति ने कहा…

मंजु जी मैं आज पढ सकी ये तांका क्‍या खूब कहा है
मोमबत्ती -से
जलते रहे हम
जीवन भर
लेकिन अँधेरे थे
कभी छँटे ही नहीं ।
आप को बहुत बहुत बधाई