मंगलवार, 29 नवंबर 2011

आस लगाए बैठे


आस लगाए बैठे(ताँका)
प्रगीत कुँअर
1
बूँद बन के
अंखियों की झील से
आँसू छलके
बहा कर ले गये
ख़्वाब थे जो कल के
2
तेज रफ़्तार
ज़िंदगानी की रेल
बिना रुके ही
पटरियों पे दौड़े
मंजिल पीछे छोड़े
3
भरे थे रंग
ज़िंदगी के चित्र में
खुशी के संग
बही आँसू की धार
हुए सब बेरंग
4
शिकायत है
खुद से बस यही
जीवन भर
बात जो दिल बोला
बस वही क्यों सुनी ?
5
कहे बिना ही
हो जाती कुछ बातें
खुद ही बयाँ
चाहे हो कितने भी
फ़ासले दरमियां
6
देखे सपने
उड़ते परिंदों के
जागे जो हम
पाया फिर खुद को
रेंगते जमीन पे
7
मेहनत का
मिलना था जो फल
आज़ न मिला
आस लगाए बैठे
शायद मिले कल
8
हर तरफ़
फिरते हैं कितने
रुखे चेहरे
दिलो-दिमाग तक
देते जख़्म गहरे
9
अंदाज़ा न था
डूबने से पहले
गहराई का
तैर के ऊपर ही
चलता कैसे पता?
10
बेड़ियाँ डाले
रिश्तों की पैरों में
पड़े हैं छाले
प्यार का मरहम
करेगा दर्द कम
-0-

9 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत एवं भावपूर्ण तांका रहा ! सुन्दर प्रस्तुती!
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/

सुभाष नीरव ने कहा…

प्रगीत कुँअर के ये तांका बहुत ही सुन्दर और पठनीय हैं।
बहुत ही सशक्त तांका। मेरी बधाई ! हां, निम्न तांका में जरा-सा संशोधन दरकार है-
कहे बिना
हो जाती कुछ बातें
खुद ही बयाँ
चाहे हो कितने भी
फ़ासले दरमियां

पहली पंक्ति में
कहे बिना की जगह 'कहे बगैर' कर दें।

सुभाष नीरव

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत गहरे भाव लेकर लिखे गए हैं ये तांके...मेरी बधाई...।
प्रियंका

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

भरे थे रंग
ज़िंदगी के चित्र में
खुशी के संग
बही आँसू की धार
हुए सब बेरंग

बहुत खूब

amita kaundal ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण तांका हैं यह बाला तो मन को छू गया बधाई.
अमिता कौंडल

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

bahut bhaavpurn taanka, badhai.

Shyam Sunder Deepti ने कहा…

sachmuch hi aise tonke vidha ko sshakat aayam pradan karte hain. subh kanayen

Vandana Ramasingh ने कहा…

अंदाज़ा न था
डूबने से पहले
गहराई का
तैर के ऊपर ही
चलता कैसे पता?

बहुत बढ़िया

Madhu Tripathi ने कहा…

देखे सपने
उड़ते परिंदों के
जागे जो हम
पाया फिर खुद को
रेंगते जमीन पे
taanka me ye sabd bahut behtreen hai
madhu MM